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मरुदेव्याशृंगारकरां
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इंकार नइयंतिय कमलय पंकाशानिह रामणाणे उरदिप परिहिंस्त्र वित्रपदरि अंगुलिया हिंसरल शुषयासि ग्रहण जंगम फकिर पिसुणश्मृदर्शनारोमन विसिल बडु लियड मसिण 3 सोहियनरहि लियन अंधन कम हा गियर्ड हरियन दिइउशीरवलमित्र किरि यठ गूढाश मंतालाई वाखरणाश्वरश्य समास निविडसंधिबंधा शांक देविनटुआईअइलाई कखसनरादिवद माहो तोरणरखेला इवरलक्षणो जेण ससुरयपुति यणुजिश कामतनुदेवदिवत्र उलिथत्रित होसाणा विंवदो किंवष्यमि गरुयत्रुनिर्मवह || घा । मंसीरमा हित हम किसून्रूसच उउ दिडुमई संवयवसंयणुकासु कुन जाणदिजायन मिसनं ।। २४ तिवली सादाण हिचडेपिषु रामावलिक दिणा लंघेमिला। सिदिगगिरिंदारोहणदार लग्रउखम्ममोत्रिय हारण पिजनसियरणवस सुयमूलप, सु
चरणतलों (तलुओं) के राग (लालिमा) में क्या पाया कि जो उसने हमारी उपेक्षा की। एड़ी के निचले हिस्सों ने अपना अनुरक्त चित्त बता दिया। अँगुलियों ने अपनी सरलता प्रकाशित कर दी। अँगूठों की उन्नति के कारण गूढ़ गाँठें हैं जो दुष्ट और कठोर हैं। रोमविहीन, शिरारहित, गोल, चिकनी, सुन्दर और उजली जाँघें क्रमिकहीनता से नीचे-नीचे अपकर्ष को प्राप्त होती हुईं, दुष्ट मित्रों की क्रिया को प्रकट करती हैं। जो राजाओं की मन्त्रणा की भाषा की तरह गूढ़ हैं, जो व्याकरण की तरह समास (समास और मांस) से रचित हैं, मानो वे सघन सन्धिबन्धों से युक्त काव्य हैं। देवी के घुटने अत्यन्त भव्य हैं, जिसके जाँघोंरूपी खम्भे राजाओं के दमन के लिए थे अथवा रति के भवन के लिए तोरण- खम्भों के समान थे। जिसने देवों और मनुष्यों सहित
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त्रिभुवन को जीत लिया है, जिसे देवों द्वारा कामतत्त्व कहा जाता है, मानो उसने इस देवी के कटि बिम्ब को स्थिरता प्रदान की है, उसके नितम्बों की गुरुता का वर्णन मैं क्या करूँ?
घत्ता - उसकी गम्भीर नाभि, दुबले मध्यभाग और तुच्छ (छोटे) उदर को मैंने देखा है। संसर्ग के कारण किसी में कोई गुण नहीं आता, यदि वह गुण जन्म से उसमें स्वयं पैदा नहीं होता ।। १५ ।।
१६.
त्रिवलियों की सीढ़ियों से चढ़कर, रोमावलीरूपी मार्ग पारकर, कामदेव स्तनरूपी गिरीन्द्र पर चढ़ने के लिए डोरस्वरूप मुक्ताहार से जा लगा। प्रिय का वशीकरण मन्त्र जिसके भुजमूल में निवास करता है,
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