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सोहनुजा हेळयलय बंधु मणिबंधुपरिहिन लायसन संठिन नाहितपातंजलिया। दियास मडर इस रहो करनखार कवळी हपाठक उपा वंश पर सासाकरिन कहना व ि विडलिविडन जियसमिति धोयहेश्वलदत्तदोंपतिदे अहरविंदर रायालन मुत्तायति यहणाईपवालन अहंटाक्याश्नमुकं न उपासावसु विडम्मुई राउंडई बंकत दिनस दिलणयां पिव कपऊं कहियर णिसिदि णससिरक्षिगयणविलक्षिम विम्पिविगंड यलयपडिविंदिय कुंडलसिरिवदंतिधवलक्षि हे जिए जणणिम देसु लग्कणकुठिहि कुडिलालय लालमलिणिरंतर मुड कमलहोधुल तिणमङयर अवरुविताहंसारु दिनरेख मुदससदर अण्णांत मरन तरुलिपडपइहनदी सकुसुम रिस्कमा सियउविदास छत्रप पार्वतिउ अमर विला सिणिने अहिनिहणिदी मिं चास्त्र कंवरसुंदरिहे पयपददयण लीणियते || १६| तियसमदा रुपिमिदसास सारद वरिसोमनु इस पंजिय लोन समुययसंति यसस्यागमुगळया ससिकंतिय सजणुगुणिलोपसंसय श्रालिंगित मुहिंसा पीवरपीएप 23
और पवित्र सौभाग्य हथेली में स्नेहबन्ध, जिसके मणिबन्ध (प्रकोष्ठ) में स्थित है, लावण्य में समुद्र जिसके सम्मुख नहीं ठहरता, वह जिसके लिए है उसी के लिए मधुर है, दूसरे के लिए विकार (रोग) जनक और खारा है। उसकी कण्ठरेखा को शंख नहीं पा सकता, दूसरों के श्वासों से आपूरित होकर वह क्यों जीवित रहता है? चन्द्रमा की कान्ति को जीतनेवाली धोयी हुई धवल, दन्त पंक्ति के निकट रहनेवाला, लालिमा का घर अधर बिम्ब ऐसा शोभित होता है जैसे मोतियों की माला में प्रवाल (मँगा) हो वह हमारे सामने कभी भी नहीं ठहरता, सीधा नासिका वंश भी दुर्मुख (दुष्ट) दो मुखवाला है। भौंहों का टेढ़ापन भी सहन नहीं किया गया। (नेत्रों के द्वारा), और उन्होंने जाकर कानों से कह दिया। दिन-रात आकाश में अवलम्बित रहनेवाले सूर्य और चन्द्रमा दोनों उसके गण्डतल में प्रतिबिम्बित हैं, और वे धवल आँखोंवाली तथा लक्षणों से युक्त कोखवाली प्रथम जिनेन्द्र की माता के कुण्डलों की शोभा को धारण करते हैं, उसके भालतल पर घुंघराले बाल निरन्तर ऐसे जान पड़ते हैं मानो मुखरूपी कमल पर भ्रमर मँडरा रहे हैं। और भी उनका विपरीत भार
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ऐसा ज्ञात होता है मानो मुखरूपी चन्द्रमा के डर से तम का प्रवाह उस तरुणी की पीठ में प्रविष्ट होता हुआ दिखाई देता है, और जो कुसुमरूषी नक्षत्रों से मिला हुआ शोभित होता है।
धत्ता - प्रणाम करती हुई प्रतिबिम्ब के बहाने अपने को हीन समझती हुई देव स्त्रियाँ उस सुन्दरी के सौन्दर्य की आकांक्षा से पैरों के नखरूपी दर्पण में लीन हो गयीं ॥ १६ ॥
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भारतवर्ष के कल्पवृक्षों से आच्छादित दसों दिशाओंवाले मध्यदेश में, जिसके हाथ पुष्ट और स्थूल स्तनों पर हैं, ऐसे अन्तिम कुलकर नाभिराजा उस मरुदेवी के साथ इस प्रकार रहते थे, मानो उत्पन्न शान्ति के साथ जीवलोक, मानो पूर्ण चन्द्रमा की कान्ति के साथ शरदागम; मानो गुणीजनों की प्रशंसा के साथ सज्जन, मानो अहिंसा के साथ धर्म आलिंगित हो ।
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