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बुनिसाला एवदिशवरकेविठयामा अमाईकणासरियनिष्णमनियमवखगमिबंगसंविमाई असह जमवायअधियाणा दाहखखायामराणा सोजालाजतिलकिहोसशतणिसणपिएमदिन
वश्वासशंजोरसंघदरिससानव अंबंकनदीसश्संयुधप
जाणिरिद लश्चलस्माविकालाचंधरायविनकामलए सात्तिराजाकश्त्रा श्लोक डरिक
दल सुरतरुवरविणासमुक्काया कमभूमिहरुहसंजा रिभधक गर्ज
या कायगलणारसुवतिजा जमकरसुसा
उत्तचिश वतियवसलथिरकद रामसपप्पिणादि । छाकरण
नरिदे निवड माणुअञ्चहरियमजणु हल्ठिक्कसिकिनमडिया सादणु धिताकपडणसिदिसधुक्कगार पटापविहाण
सादिनई कप्याससुत्रपरिमणाई पाडपरिखम्मदाखिमजा शातसुधरिणिमहरविसडारा जास्वसिरिधशारुयारी अमरपतिएपयपणतिय लघिमारू
पिनातराआग्र
गत कल्पवृक्ष जहाँ पर स्थित थे, इस समय वहाँ पर दूसरे वृक्ष उग आये हैं और दानों से भरे हुए पौधे निष्पन्न नष्ट होती हई प्रजा का उद्धार किया। हाथी के कुम्भस्थल के समान उन्होंने मिट्टी का घड़ा बनाया। हुए हैं जो नित्य ही पक्षियों और पशुओं के द्वारा चुगे जाते हैं। उपाय को नहीं जाननेवाले हम लोग जड़ हैं घत्ता-(उन्होंने) दानों का फटकना, आग को धौंकना आदि और भोजन बनाने के विधानों को उत्पन्न
और लम्बी भूख के क्लेश से दुःखी हैं। उनमें खाने योग्य और न खाने योग्य क्या होगा?" यह सुनकर राजा किया। तथा कपास से सूत खींचना और कपड़ा बुनने का कर्म बताया ॥१४॥ घोषणा करता है- “जो गरजता हुआ बरसता है वह नवधन है। जो टेढ़ा दिखाई देता है वह इन्द्रधनुष है। जो चलती है और पहाड़ को नष्ट कर देती है वह बिजली है। कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर अच्छी छायावाले
१५ ये कर्मभूमि के वृक्ष उत्पन्न हुए हैं। जो कडुवा-विषैला और नीरस फल है उससे बचना चाहिए, और जो आदरणीया मरुदेवी उनकी गृहिणी थीं जिनकी रूपश्री गौरव को बढ़ानेवाली थी। जिसके नूपुरों ने मानो मधुर तथा सुस्वादु है उसे खाना चाहिए।" क्षत्रियरूपी वंशस्थल के प्रथम अंकुर नाभिराजा ने यह कहकर यह घोषणा की कि आकाश से आयी हुई देवपंक्ति ने
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