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पुष्पमाला
८१ आज जिस प्रकार उत्तम दिन भोगा, वैसे अपनी जिन्दगी भोगनेके लिये तू आनंदित हो तो ही यह०।-(अपूर्ण)
८२ आज जिस पलमें तू मेरी कथा मनन करता है, उसीको अपनी आयुष्य समझकर सद्वृत्तिमें प्रेरित हो।
८३ सत्पुरुष विदुरके कहे अनुसार आज ऐसा कृत्य करना कि रातमें सुखसे सो सके ।
८४ आजका दिन सुनहरी है, पवित्र है—कृतकृत्य होनेके योग्य है, यह सत्पुरुषोंने कहा है, इसलिये मान्य कर।
८५ आजके दिनमें जैसे बने तैसे स्वपत्नीमें विषयासक्त भी कम रहना । ८६ आत्मिक और शारिरिक शक्तिकी दिव्यताका वह मूल है, यह ज्ञानियोंका अनुभवसिद्ध वचन है।
८७ तमाख सूंघने जैसा छोटा व्यसन भी हो तो आज पूर्ण कर ।-(०) नया व्यसन करनेसे अटक ।
८८ देश, काल, मित्र इन सबका विचार सब मनुष्योंको इस प्रभातमें स्वशक्ति समान करना उचित है।
८९ आज कितने सत्पुरुषोंका समागम हुआ, आज वास्तविक आनंदस्वरूप क्या हुआ ? यह चितवन विरले पुरुष करते हैं।
९० आज तू चाहे जैसे भयंकर परन्तु उत्तम कृत्यमें तत्पर हो तो नाहिम्मत नहीं होना । ९१ शुद्ध, सच्चिदानन्द, करुणामय परमेश्वरकी भक्ति यह आजके तेरे सत्कृत्यका जीवन है ।
९२ तेरा, तेरे कुटुम्बका, मित्रका, पुत्रका, पत्नीका, माता पिताका, गुरुका, विद्वान्का, सत्पुरुषका यथाशक्ति हित, सन्मान, विनय और लाभका कर्तव्य हुआ हो तो आजके दिनकी वह सुगंध है। . ९३ जिसके घर यह दिन क्लेश विना, स्वच्छतासे, शौचतासे, ऐक्यसे, संतोषसे, सौम्यतासे, स्नेहसे, सभ्यतासे और सुखसे बीतेगा उसके घर पवित्रताका वास है। - ९४ कुशल और आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञावलम्बी धर्मयुक्त अनुचर, सद्गुणी सुन्दरी, मेलवाला कुटुम्ब, सत्पुरुषके तुल्य अपनी दशा, जिस पुरुषकी होगी उसका आजका दिन हम सबको वंदनीय है ।
९५ इन सब लक्षणोंसे युक्त होनेके लिये जो पुरुष विचक्षणतासे प्रयत्न करता है, उसका दिन हमको माननीय है।
९६ इससे उलटा वर्तन जहाँ मच रहा है, वह घर हमारी कटाक्ष दृष्टिकी रेखा है।
९७ भले ही अपनी आजीविका जितना तू प्राप्त करता हो परन्तु निरुपाधिमय हो तो उपाधिमय राज-सुख चाहकर अपने आजके दिनको अपवित्र नहीं करना। ..
९८ किसीने तुझे कडुआ वचन कहा हो तो उस वक्तमें सहनशीलता-निरुपयोगी भी, (अपूर्ण)
९९ दिनकी भूलके लिये रातमें हँसना, परन्तु वैसा हँसना फिरसे न हो यह लक्षमें रखना। : १०० आज कुछ बुद्धि-प्रभाव बढ़ाया हो, आत्मिक शक्ति उज्ज्वल की हो, पवित्र कृत्यकी वृद्धि की हो तो वह,-(अपूर्ण)
१०१ अयोग्य रीतिसे आज अपनी किसी शक्तिका उपयोग नहीं करना,-मर्यादा-लोपनसे करना पदे तो पापभीर रहना।