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श्रीमद् राजवन्द्र
५७ तेरे हाथसे आज किसीकी आजीविका टूटती हो तो,—(अपूर्ण) ५८ आहार-क्रियामें अब तूने प्रवेश किया । मिताहारी अकबर सर्वोत्तम बादशाह गिना गया ।
५९ यदि आज दिनमें तेरा सोनेका मन हो तो उस समय ईश्वरभक्तिपरायण हो अथवा सत्शास्त्रका लाभ ले लेना।
६० मैं समझता हूँ कि ऐसा होना दुर्घट है तो भी अभ्यास सबका उपाय है। ६१ चला आता हुआ बैर आज निर्मूल किया जाय तो उत्तम, नहीं तो उसकी सावधानी रखना।
६२ इसी तरह नया बैर नहीं बढ़ाना, कारण कि बैर करके कितने कालका सुख भोगना है ! यह विचार तत्त्वज्ञानी करते हैं ।
६३ महारंभी-हिंसायुक्त व्यापारमें आज पड़ना पड़ता हो तो अटकना। ६४ बहुत लक्ष्मी मिलनेपर भी आज अन्यायसे किसीका जीव जाता हो तो अटकना। ६५ वक्त अमूल्य है, यह बात. विचार कर आजके दिनकी २१६००० विपलोंका उपयोग करना। ६६ वास्तविक सुख मात्र विरागमें है, इसलिये जंजाल-मोहिनीसे आज अभ्यंतर-मोहिनी नहीं बढ़ाना। ६७ अवकाशका दिन हो तो पहले कही हुई स्वतंत्रतानुसार चलना ।
६८ किसी प्रकारका निष्पाप विनोद अथवा अन्य कोई निष्पाप साधन आजकी आनंदनीयताके लिये दूँदना। .. ६९ सुयोजक कृत्य करनेमें प्रेरित होना हो तो विलंब करनेका आजका दिन नहीं, कारण कि आज जैसा मंगलदायक दिन दूसरा नहीं।
७० अधिकारी हो तो भी प्रजा-हित भूलना नहीं । कारण कि जिसका (राजाका ) तू नमक खाता है, वह भी प्रजाका सन्मानित नौकर है।
७१ व्यवहारिक प्रयोजनमें भी उपयोगपूर्वक विवेकी रहनेकी सत्प्रतिज्ञा लेकर आजके दिनमें लगना। ७२ सायंकाल होनेके पीछे विशेष शान्ति लेना ।
७३ आजके दिनमें इतनी वस्तुओंको बाधा न आवे, तभी वास्तविक विचक्षणता गिनी जा सकती है-१ आरोग्यता २ महत्ता ३ पवित्रता ४ फरज ।
७४ यदि आज तुझसे कोई महान् काम होता हो तो अपने सर्व सुखका बलिदान कर देना।
७५ करज नीच रज ( करज ) है, करज यमके हाथसे उत्पन्न हुई वस्तु है, ( कर+ज) कर यह राक्षसी राजाका जुल्मी कर वसूल करने वाला है। यह हो तो आज उतारना और नया करज करते हुए अटकना।
७६ दिनके कृत्यका हिसाब अब देख जाना। ७७ सुबह स्मृति कराई है, तो भी कुछ अयोग्य हुआ हो तो पश्चात्ताप कर और शिक्षा ले।
७८ कोई परोपकार, दान, लाभ अथवा अन्यका हित करके आया हो तो आनंद मान कर निरभिमानी रह ।
७९ जाने अजाने भी विपरीत हुआ हो तो अब उससे अटकना। ८० व्यवहारके नियम रखना और अवकाशमें संसारकी निवृत्ति खोज करना। .....