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सर्वदर्शनसंग्रहे
को स्वीकार करने वालों को यह नहीं समझना चाहिए कि सत्ता की सामान्य -दशा में भाग लेना ( योगदान करना ) ही सत्ता है ( = वस्तु के सामान्य जैसे गोत्व, पशुत्व आदि को सत्ता नहीं कहते जैसा कि कणाद, गौतमादि मानते हैं ), नहीं तो सामान्य, विशेष और समवाय --- इन वैशेषिक-सम्मत पदार्थों की भी सत्ता न होने का भय उत्पन्न हो जायगा । ( क्योंकि ये पदार्थ सामान्य में भाग नहीं लेते - सामान्य का, विशेष का और समवाय का सामान्य नहीं होता । इन पदार्थों की सत्ता न रहने से वैशेषिक दर्शन का मूल ही नष्ट हो जायगा । )
ऐसा भी नहीं कह सकते कि वहाँ ( = सामान्य, विशेष और समवाय पर ) सत्ता का आरोप करना अपने रूप की सत्ता पर निर्भर करता है ( चूँकि इन पदार्थों की अपनी सत्ता तो निःसन्दिग्ध है इसलिए इन पर सत्ता का आरोप भी कर सकते। जैसी अपनी सत्ता, वैसी सामान्य सत्ता ) । ऐसा करने से बहुत से प्रयोजकों (स्वरूप - सत्ताओं ) की आवश्यकता होगी ( और वह बहुत श्रमसाध्य होगा ) ।
यही नहीं, सामान्य की सत्ता को ( अनेक में एक की ) उपस्थिति और अनुपस्थितिविषयक विकल्पों की द्विविधा में डालकर असिद्ध कर सकते हैं । ( अनेक में एक सामान्य होता है, यदि उसकी उपस्थिति है तो भी दोष, नहीं है तो भी दोष — इसलिए सामान्य की सत्ता नहीं है ) । इसके अलावे क्षणों ( पदार्थों) में सामान्य रूप से, मणियों [ की माला ] में सूत्र की तरह या भूत गणों में ( पृथ्वी, जल आदि में ) गुणों ( रूप, रसादि ) की तरह, वर्तमान कोई भी आकार दिखलाई नहीं पड़ता [ जिसे हम सामान्य कहकर पुकार सकें] 1
किं च सामान्यं सर्वगतं स्वाश्रयसर्वगतं वा ? प्रथमे सर्ववस्तुसङ्करप्रसङ्गः । अपसिद्धान्तापत्तिश्च । यतः प्रोक्तं प्रशस्तपादेन -- ' स्वविषयसर्वगतमिति' ।
कि च विद्यमाने घटे वर्तमानं सामान्यमन्यत्र जायमानेन सम्बध्यमानं तस्मादागच्छत्सम्बध्यते अनागच्छद्वा ? आद्ये द्रव्यत्वापत्तिः । द्वितीये सम्बन्धानुपपत्तिः ।
इसके अतिरिक्त [ यह बतावें कि ] सामान्य सभी में है अथवा अपने आश्रय में सर्वत्र स्थित है ? यदि पहले विकल्प को लेते हैं ( सामान्य सर्वगत है ) तो सभी वस्तुएं आपस में मिल जायेंगी ( कोई भेद नहीं रहेगा, विशृंखलता हो जायगी ) । दूसरे, आपका विरोधी सिद्धान्त आ धमकेगा, क्योंकि प्रशस्तपाद ( वैशेषिक - सूत्रभाष्य के लेखक ) का कथन है'अपने विषयों या आश्रयों में सर्वत्र विद्यमान है' ।
अब [ यदि सामान्य केवल अपने आश्रमों में सर्वतोभावेन विद्यमान है तो बतावें कि ] पहले से विद्यमान घट में उपस्थित सामान्य, दूसरे स्थान पर उत्पन्न होने बाले (घट) से