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सर्वदर्शनसंग्रहे
( ५ ) धारावाहिक विज्ञान ( ज्ञान - सन्तान, Series of knowledge ) में व्यभिचार रोकने के लिए अप्रकाशित का प्रयोग हुआ है [ धारावाहिक विज्ञान में प्रथम ज्ञान अज्ञानपूर्वक होता है । उस प्रथम ज्ञान से अज्ञान की निवृत्ति होती है और विषय का प्रकाशन होता है । अब तो प्रकाशित वस्तु का ही प्रकाशन आरम्भ होने लगता है, अप्रकाशित का नहीं । केवल इसी गुण का ही अभाव धारावाहिक विज्ञान में है, अन्यथा और सब समान हैं । ]
[ अब दृष्टान्त की सार्थकता पर प्रकाश डालते हैं । ]
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मध्यवर्तिप्रदीपप्रभायां साध्यसाधनवंधुर्यप्रतिरोधाय प्रथमोत्पन्नविशेषणम् । सौरालोकव्याप्तदेशस्थप्रदीपप्रभाप्रतिक्षेपायान्धकारेति । न च ज्ञानसाधके प्रमाणे व्यभिचारः शङ्कनीयः । विप्रतिपन्नं प्रत्यसत्त्वनिवृत्तिमात्रस्य प्रमाणकृत्यत्वात् । तदुक्तं देवताधिकरणे कल्पतरुकारै:अनुमानादिभिरसत्त्वनिवृत्तिक्रियत इति ।
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मध्यवर्ती ( प्रथम क्षण और अन्तिम क्षण के बीच की ) प्रदीप -प्रभा में साध्य - साधन का अभाव रोकने के लिए 'प्रथम उत्पन्न' यह विशेषण लगाया गया है । [ दीप की प्रभा क्षण-क्षण में बदलती रहती है । उपर्युक्त अनुमान में प्रथम उत्पन्न दीप -प्रभा का दिया गया है अर्थात् अन्धकार से भरे स्थान में प्रथम क्षण की दीप- प्रभा । यहाँ पर उपर्युक्त लक्षणों से युक्त वस्त्वन्तरं अन्धकार है तो 'अन्धकार के बाद होना' साध्य हुआ । 'अप्रकाशित का प्रकाशन' हेतु है । यह स्पष्ट है कि मध्यवर्ती प्रभा उक्त वत्स्वन्तर के बाद नहीं होती, क्योंकि अन्धकार की निवृत्ति प्रथम क्षण की प्रभा से ही हो जाती है । मध्यवर्ती प्रभा अप्रकाशित वस्तु का प्रकाशन भी नहीं करती, क्योंकि यह काम भी तो प्रथम क्षण वाली प्रभा ही करती है । इसलिए मध्यवर्ती प्रभा में साध्य - साधन का अभाव है और वह दृष्टान्त के रूप में नहीं दी जा सकती । दृष्टान्त को सार्थकता के लिए 'प्रथम उत्पन्न' विशेषण लगाया गया है । ]
उसी तरह सूर्य के आलोक से व्याप्त स्थानों में ( Exclusion ) करने के लिए 'अन्धकार' शब्द का प्रकाश फैला हो और यदि दीप की प्रभा प्रथम क्षण में ( प्रभा ) न तो हेतु ही हो सकती है और न साध्य ही । के रूप में नहीं आ सकती । अन्धकार को हटानेवाली प्रभा हो
दृष्टान्त हो सकती है । ]
उक्त प्रदीप प्रभा का व्यभिचार ज्ञानसाधक प्रमाण में होगा, ऐसी शंका न करें क्योंकि प्रमाण का काम केवल इतना ही है कि किसी वस्तु के अस्तित्व के विषय में विवाद करनेवाले व्यक्ति को उसके असत्ता विषयक सन्देह को मिटा दें । [ व्यभिचार ( असहचर ) की की सम्भावना इसलिए थी कि सभी प्रमाण तो ज्ञान के साधक हैं । प्रत्यक्ष ज्ञान की साधक
स्थित प्रदीप की प्रभा को व्यावृत्ति प्रयोग हुआ है । [ दिन में सूर्य का उत्पन्न हुई भी हो, फिर भी वह इसलिए वैसी दीप- प्रभा दृष्टान्त