________________
७५२
सर्वदर्शनसंग्रहे
अत एवोक्तं खण्डनकारेण - व्यावहारिकों प्रमाणसत्तामादाय विचारारम्भ:' ( ख० ख० खा०, पृ० ४४ ) इति । न च भेदग्राहिभिः प्रमाणै रद्वैतश्रुतेर्जघन्यतेति शङ्खधम् । ब्रह्मणि पारमार्थिक सत्यत्वेन तदावेदिकायास्तत्वावेदनलक्षणप्रामाण्यायाः श्रुतेर्व्यावहारिकप्रमाणभावानां प्रत्यक्षादीनां च विभिन्नविषयतया परस्परं बाध्यबाधकभावासम्भवात् ।
इसलिए तो खण्डनखण्डखाद्य के रचयिता [ श्रीहर्ष ] ने कहा है- 'विचार ( ब्रह्मविषयक, प्रमाणविषयक आदि ) का आरम्भ व्यावहारिक प्रमाण सत्ता को आधार मानकर होता है ।' ( पृ० ४४ ) ।
करानेवाले प्रमाणों के
=
ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि भेद ( Difference ) का बोध द्वारा अद्वैत की प्रतिपादक श्रुतियों की गौणता ( जघन्यता ) सिद्ध हो जायगी। ] भेद: जीव और ईश्वर में, जीवों में परस्पर भेद या जड़ पदार्थ का भेद । इनका अनुभव व्यवहार-दशा में होता है । तो श्रीहर्ष की उक्ति के अनुसार, इन्हें प्रामाणिक मानकर कहीं अद्वैत-श्रुति ( एकमेवाद्वितीयम् ) कहीं गौण न हो जाय । ] बात ऐसी है कि ब्रह्म में पारमार्थिक सत्यता होने से, उसका आवेदन ( Exposition) करनेवाली श्रुति, जिसका लक्षण और प्रामाण्य आवेदन करना ही है, उसके कारण [ उक्त ब्रह्म की पारमार्थिक सत्ता में और ] व्यावहारिक सत्ता ( प्रमाण-भाव ) या प्रत्यक्षादि में, परस्पर बाध्य - बाधक का सम्बन्ध नहीं हो सकता क्योंकि [ उन दोनों सत्ताओं के ] विषय भिन्न भिन्न हैं । [ पारमार्थिक सत्ता ब्रह्म के लिए है और व्यावहारिक सत्ता प्रत्यक्षादि के लिए। दोनों अपनेअपने क्षेत्र में सत्य हैं । जैसे व्यावहारिक सीपी की सत्यता और प्रातिभासिक रजत की सत्यता में कोई अन्तर नहीं, उसी प्रकार श्रुत्युक्त ब्रह्म के अद्वैत की पारमार्थिक सत्यता में और द्वेत-प्रतीति की व्यावहारिक सत्यता में कोई विरोध नहीं । ] तदप्युक्तं तेनैव
५४. तदद्वैतश्रुतेस्तावद् बाधः प्रत्यक्षतः क्षतः । नानुमानादि तं कर्तुं तवापि क्षमते मते ॥
( ख० १२० ) ५५. धोधना बाधनायास्यास्तदा प्रज्ञां प्रयच्छथ । क्षेप्तुं चिन्तामण पाणिलब्धमब्धौ यदीच्छथ ॥
( ख. १।२४ ) इति । तस्मात्तत्त्वज्ञानेन निवर्तनायास्य बन्धस्याज्ञानकल्पितत्वभङ्गी कर्तव्यम् । यत उक्तं-यतो ज्ञानमज्ञानस्य निवर्तकमिति ।
--
यह बात भी उसी ( श्रीहर्ष, खण्डनकार ) ने कही है - ' इसलिए अद्वैत - प्रतिपादक श्रुति के प्रत्यक्ष प्रमाण से बांध ( Opposition ) होने की बात समाप्त हो गयी । अनुमान