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सांख्य दर्शनम्
एतच्च निरीश्वरसांख्यशास्त्रप्रवर्तककपिलादिमतानुसारिणां मुपन्यस्तम्
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इति श्रीमत्सायण माधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे सांख्यदर्शनम् ॥
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मत
अब शंका होती है कि प्रधान की प्रवृत्ति भले ही पुरुष के काम के लिए हो, पर
दोष देख लिये जाने अथवा जैसे अपना [ पुरुष को अपना
उसकी निवृत्ति कैसे होगी ? इसका उत्तर है कि जैसे पति के द्वारा पर स्वेच्छाचारिणी स्त्री फिर अपने पति के पास लौटकर नहीं आती काम समाप्त कर लेने पर नर्तकी चली जाती है वैसे ही प्रकृति भी कार्यसमूह या परिणाम दिखाकर निवृत्त हो जाती है । ] जैसे कहा गया है - दर्शक - मण्डली को [ नृत्य ] दिखाकर जैसे कोई नर्तकी अपने नृत्य से अलग हो जाती है वैसे ही पुरुष को अपना स्वरूप ( स्थूल परिणाम ) दिखलाकर प्रकृति भी निवृत्त हो जाती है ।' सां० का ० ५९ ) ।
निरीश्वर सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक कपिल आदि आचार्यों का मत माननेवाले लोगों का यह सिद्धान्त यहां उपस्थित किया गया है ।
इस प्रकार श्रीसायणमाधव के सर्वदर्शनसंग्रह में सांख्यदर्शन समाप्त हुआ । इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शनसंग्रहस्य प्रकाशाख्यायां व्याख्यायां सांख्यदर्शनमवसितम् ॥