________________
७३२
सर्वदर्शनसंग्रहे
हो रहा है । [ अतः इन प्रमाणों के अधीन तो 'अहमज्ञः ' नहीं ही है । अब अनुपलब्धि की खबर लेते हैं । ] अनुपलब्ध्या जन्यत इति चेत्-न तावदियमज्ञाता कारणम् । प्रत्यक्षतरस्य ज्ञातकरणत्व नियमात् । नापि ज्ञातंव कारणम् । अनुपलब्ध्यनवस्थानात् । न च यथा परेषामभावग्रहणे योग्यानुपलब्धिः सहकारिणी तथा नः करणमिति शङ्खधम् । ज्ञानकरण इव सहकारिणि ज्ञातत्वनियमाभावात् । अस्तु वा तथा ज्ञेयाभावग्रहणे करणम् । ज्ञानाभावग्रहणे करणं न भवत्येवेति वक्ष्यते ।
1
यह कहा जा सकता है कि [ 'अहमज्ञः' में विद्यमान ज्ञानाभाव ] अनुपलब्धि से उत्पन्न होगा [ जेसे 'भूतले घटो नास्ति' में घटाभाव का ज्ञान होता है ] । तो हम उत्तर देंगे कि यह ( अनुपलब्धि ) भी बिना ज्ञान हुए प्रमाण (करण) नहीं बन सकती । [ जब तक घट की अनुपलब्धि ज्ञात न हो तब तक घटाभाव जान लेना सम्भव नहीं है । स्मरणीय है कि अनुपलब्धि को जानने के लिए ही यह प्रमाण स्वीकार किया गया है । ]
यह नियम है कि प्रत्यक्ष से भिन्न किसी भी प्रमाण का कारण ( साधन ) ज्ञात ही रहना चाहिए। दूसरी ओर यह भी जान लें कि केवल ज्ञात होने से ही यह प्रमाण के रूप में नहीं आ सकती क्योंकि तब अनुपलब्धि की अनवस्था हो जायगी । [ यदि घटानुपलब्धि ज्ञात होने पर ही घटाभाव का कारण बनती है तो कहिए कि घटानुपलब्धि का ज्ञान ही कैसे हुआ ? घट की उपलब्धि का अभाव ही घटानुपलब्धि है । उस घटोपलब्धि के अभाव का ज्ञान भी अनुपलब्धि से ही होगा अर्थात् 'उपलब्धि की अनुपलब्धि' से उपलब्ध का अभाव ज्ञात होता है । इस क्रम से बढ़ते जाने में कहीं अन्त नहीं । ]
आप ऐसी शंका नहीं कर सकते कि जैसे दूसरे ( नैयायिकादि ) लोग [ अनुपलब्धि प्रमाण नहीं मानकर ] अभाव का प्रत्यक्ष मानते हैं तथा योग्य ( Competent ) अनुपलब्धि को सहकारी मानते हैं उसी प्रकार हम भी अनुपलब्धि को ज्ञान का कारण ( प्रमाण ) मानें || नेयायिक लोग अनुपलब्धि मानते हैं, पर पृथक् प्रमाण रूप में नहीं; केवल प्रत्यक्ष के सहायक के रूप में | घटाभाव प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञात होता है । योग्यानुपलब्धि सहायता करती है । योग्य अनुपलब्धि = यदि घट होता तो अवश्य दिखलाई पड़ता । तो, इनके मत से अनुपलब्धि ज्ञात रहे या अज्ञात - सहायक ही होती है, इस तरह अनवस्था से बच जाते हैं। वैसे ये भी कहते हैं कि हम अनुपलब्धि को प्रमाण ( पृथक् ) मानते हुए भी अनवस्था से बचा लें | ] ऐसा इसलिए नहीं होगा कि सहकारी होने पर ज्ञात होने का नियम नहीं है, पृथक् ज्ञान-साधन (प्रमाण, Source of valid knowledge ) होने पर तो उसे [ ज्ञात रहना ही पड़ेगा । ]
यदि वेसा हो भी ( अनुपलब्धि छठा प्रमाण रहे--अज्ञान या ज्ञात किसी भी दशा में प्रमाण हो ) तो भो वह ज्ञेय के अभाव का बोध करने के लिए प्रमाण है, ज्ञान के अभाव