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सर्वदर्शनसंग्रहे
कारण का ही अभाव हो जायगा । [ अभाव के ज्ञान के लिए धर्मो ( आधार ) और प्रतियोगी का ज्ञान कारणरूप है । किन्तु आप पूर्वपक्षी लोग इन्हें मान नहीं रहे हैं । अतः कारण के अभाव में कार्य उत्पन्न होगा ही नहीं ] इसलिए भी योग्य अनुपलब्धि के कारण या फल के रूप में लिंग आदि का अभाव होने से आत्मा में ज्ञान सामान्य के अभाव का ग्रहण करना असम्भव है । इसलिए दूसरों ( अनुपलब्धि को प्रमाण माननेवाले भाट्ट मीमांसकों) के मत से भी हमारा नियम मिलता-जुलता है । [ ऊपर दिखा चुके हैं कि धर्मी और प्रतियोगी का ज्ञान रहे या नहीं रहे—दोनों ही अवस्थाओं में ज्ञानसामान्य का अभाव ग्रहण करना असम्भव है । इसलिए भी न तो अनुपलब्धि से ज्ञानसामान्य के अभाव का ग्रहण होता है और न ही अनुमान से । अनुमान की सम्भावना थी - ज्ञान का सर्वत्र व्यवहार फल के रूप में होता है, यही लिङ्ग है । वह लिङ्ग यहाँ नहीं मिलता, इसलिए 'अदर्शन' हेतु के द्वारा ज्ञानाभाव का अनुमान सम्भव था । ]
तो, इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि प्रत्यक्ष से या किसी दूसरे प्रमाण से आत्मा में ज्ञानमात्र का अभाव ग्रहण करना असम्भव है । अब 'अहमज्ञः' में ज्ञानविशेष का अभाव - वाला विकल्प लेते हैं ।
ननु ज्ञानविशेषाभावः प्रत्यक्षेण गृह्यताम् । न तावत्स्मरणाभावः । अभावग्रहणे प्रतियोगिस्मरणस्य कारणत्वात् । नाप्यनुभवाभावः । तस्यावर्जनीयत्वात् । नन्वात्मनि घटानुभवाभाव: प्रत्यक्षविषयस्तहि 'अहमज्ञः ' इति ज्ञानसामान्यवचनो जानातिर्ज्ञानविशेषेऽनुभवे लक्षणया वर्तनीयः । लक्षणा च सम्बन्धेऽनुपपत्तौ च सत्यां वर्तते ।
[ पूर्वपक्षी कहते हैं कि यदि 'अहमश:' में प्रत्यक्ष के द्वारा ज्ञानसामान्य का अभाव सिद्ध नहीं हुआ तो ] प्रत्यक्ष से ज्ञान विशेष का अभाव लीजिये । [ अच्छा तो ज्ञानविशेष का अर्थ क्या है ? स्मरण नया अनुभव ? ] उक्त प्रत्यक्ष को स्मरण का अभाव ( अहमज्ञः = मैं स्मरण-रूपी ज्ञान के अभाव से युक्त हैं; इस रूप में ) तो नहीं मान सकते क्योंकि अभाव के ज्ञान में [ प्रतियोगी का ज्ञान ] कारण होता है और यहाँ प्रतियोगी है स्मरण । [ इसलिए स्मरण का ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान स्मरणात्मक ही है तो उसमें स्मरणाभाव कैसे सम्भव है ? ]
उक्त प्रत्यक्ष अनुभव का अभाव भी नहीं क्योंकि [ ज्ञानाभाव से सम्बद्ध ज्ञान अनुभव के रूप में है अतः ] अनुभव तो अनिवार्य ही है ( उसका अभाव कैसे मानेंगे ? ) अब पुनः शंका होती है कि आत्मा में घट के अनुभव का अभाव यदि प्रत्यक्ष का विषय ( Perceptible ) है तो 'अहमज्ञ : ' ज्ञानसामान्य के वाचक ज्ञा धातु (जानना) को लक्षणा ( Indication ) शक्ति के द्वारा ज्ञान ( आत्मस्वरूप ) - विशेष से सम्बद्ध अनुभव के अर्थ में समझना चाहिए । लक्षणावृत्ति का तब ग्रहण करते हैं जब सम्बन्ध की उपपत्ति ( justification ) नहीं हो रही हो ।