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शांकर-दर्शनम् गुणत्वाच्च । अत उभयोरभेदाध्यासः । आत्माध्यासश्चोक्तलक्षणाविद्या. स्मेति-आयातमविद्यायामेवाहमज्ञ इति प्रतिभासः प्रमाणमिति ।
उसके बाद, चूंकि वह इन्द्रिय-सन्निकर्ष संयोगादि के रूप में नहीं हो सकता ( = चक्षु के संयोग से घटाभाव को देखा नहीं जा सकता ), इसलिए संयुक्त वस्तु ( भूतल ) के साथ विशेषण-विशेष्य को भी कल्पना करनी पड़ेगी । [ घटाभाव से युक्त भूतल है -इसमें भूतल चक्षु से संयुक्त है और घटाभाव विशेषण के रूप में है । भूतल में घटाभाव हैयहाँ चक्षु से संयुक्त भूतल में घटाभाव विशेष्य के रूप में है। इसी तरह की कल्पनायें करनी पड़ेंगी।]
इस [ बार-बार की कल्पना ] से तो कहीं अच्छा है उपर्युक्त लक्षण (प्रतियोगी का स्मरण होने पर जिसकी अनुभूति होती है ) से युक्त अधिकरण को व्यवहार के रूप में माने । [ तो, अभाव का अनुभव = प्रतियोगी के स्मरण के साथ अधिकरण का अनुभव । अशव = अधिकरण ] ऐसा होने पर ज्ञानाभाव के द्वारा भी जब प्रतियोगी का स्मरण होता है तो जिस अधिकरण का अनुभव किया जा रहा है वह ज्ञाता ही है । [ 'अहमज्ञः' में ज्ञात के अभाव की अनुभूति जिस अधिकरण में हो रही है वह अधिकरण ही ज्ञाता ( अध्यस्त आत्मा) है। ] वह ज्ञाता न तो केवल अन्तःकरण ( मन ) है, क्योंकि मन जड़ होता है [ और ज्ञाता को चेतन होना आवश्यक है ] । वह केवल आत्मा भी नहीं है, क्योंकि आत्मा में न तो परिणाम ( परिवर्तन ) होता है और न उसमें कोई गुण ही रहते हैं ।
इसलिए [ उस ज्ञाता पर आत्मा और अन्तःकरण ] दोनों के अभेद ( सादृश्य ) का अध्यास ( Superimposition ) होता है । अब, आत्मा का अध्यास चूंकि उपर्युक्त लक्षणों से युक्त अविद्या के रूप में ही होता है, अतः अविद्या में ही 'अहमज्ञः' इस के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण पर पहुंचते हैं।
(२०. अनुमान से अविद्या की सिद्धि ) अनुमानं च-विवादपदं प्रमाणज्ञानं स्वप्रागभावव्यतिरिक्तस्वविषया. वरणस्वनिवर्त्यस्वदेशगतवस्त्वन्तरपूर्वकमप्रकाशितार्थप्रकाशकत्वात् । अन्धकारे प्रथमोत्पन्नप्रदीपप्रभावदिति । __ वस्तुपूर्वकमित्युक्त आत्मवस्तुपूर्वकत्वेनार्थान्तरता। तदर्थ वस्त्वन्तरेति। तथापि। विषयभूते वस्त्वन्तरेऽर्थान्तरता। तदर्थं स्वदेशगतेति । अदृष्टादिकं प्रत्यादेष्टुं स्वनिवत्यति ।
[ अविद्या की सिद्धि के लिए ] अनुमान भी होता है
(१) विवादास्पद (प्रस्तुत ) प्रमाणज्ञान ऐसे वस्त्वन्तर ( दूसरी वस्तु अर्थात् अविद्या ) के बाद होता है जो ( वस्त्वन्तर अपने प्रागभाव से व्यतिरिक्त ( Different )