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पातञ्जल -दर्शनम्
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की टीका न्याय रत्नावली ( रचयिता - ब्रह्मानन्द सरस्वती, समय - १६५० ई० ) में; दूसरे, सूतसंहिता के शिवमाहात्म्यखण्ड के आरम्भ में विद्यारण्य की टीका में ।
तदापि न घटते । निरोधप्रतियोगिभूतानां प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतिस्वरूपाणां वृत्तीनामन्तःकरणाद्यपरपर्यायचित्तधर्मत्वाङ्गीकारात् । कूटस्थनित्या चिच्छक्तिरपरिणामिनि विज्ञानधर्माश्रयो भवितुं नार्हत्येव ।
न च चितिशक्तेरपरिणामित्वमसिद्धमिति मन्तव्यम् । 'चितिशक्तिरपरिणामिनी सदा ज्ञातृत्वात्, न यदेवं न तदेवं यथा चित्तादि' इत्याद्यनुमानसम्भवात् ।
उपर्युक्त शंका करना भी ठीक नहीं है । निरोध या विनाश के प्रतियोगी के रूप में वृत्तियाँ - प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति - स्वीकृत की गई हैं ( अर्था वृत्तियों का ही निरोध होता है ) । ये वृत्तियाँ अन्तःकरण आदि ( = बुद्धि, चित्त, अन्तः करण ) के नाम से पुकारे जानेवाले चित्त के ही धर्म मानी गई हैं । [ ज्ञान, चित्त का ही परिणाम है । बुद्धि की वृत्ति में विषयों का आकार आ जाना ज्ञान है और विषयों के आकार से उपरक्त बुद्धि की वृत्ति का प्रतिबिम्ब चित्-शक्ति पर पड़ता है । जैसे जल में प्रतिबिम्बित होने की सामर्थ्य रूप से युक्त स्थूल द्रव्य में है उसी प्रकार पुरुष में प्रतिबिम्ब होने की सामर्थ्य, वृत्ति से युक्त चित्त में ही है । उस समय बुद्धि की वृत्तियों से ग्रहण न कर सकने के कारण उस प्रकार की बुद्धि को वृत्तियों से अभिन्न रूप में चितिशक्ति वस्तुओं का अनुभव करती है। फलतः ज्ञान वास्तव में बुद्धि का धर्म है, आत्मा का नहीं । आत्मा की कूटस्थता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । ]
[ नैयायिकादि जो ज्ञान को आत्मा के धर्म मानते हैं उनका उत्तर यह है - ] चित्रशक्ति ( चैतन्य या आत्मा ) कूटस्थ ( मूल रूप में स्थित ), नित्य तथा परिणाम ( परिवर्तन, विकृति ) से रहित है, वह विज्ञान-धर्म का आश्रय नहीं ही हो सकती है । [ ज्ञान का अर्थ है विषय के आकार के सदृश आकार में परिणत होना । आत्मा अपरिणामी है अतः ज्ञान का आश्रय वह नहीं हो सकती है । ]
ऐसा नहीं समझना चाहिए कि चितिशक्ति ( आत्मा ) का अपरिणामी होना असिद्ध है । [ चितिशक्ति को अपरिणामी मानने के लिए ] इस प्रकार के अनुमान की सम्भावना है
( १ ) चितिशक्ति अपरिणामी
| ( प्रतिज्ञा )
( २ ) क्योंकि यह सदा ज्ञाता के रूप में रहती है | ( हेतु )
३ ) जो ऐसा ( अपरिणामो ) नहीं है वह वैसा ( ज्ञाता ) भी नहीं, जैसे चित्त आदि । ( व्यतिरेक दृष्टान्त )
विशेष -चित्-शक्ति का विषय है वृत्ति से युक्त चित्त । चित्त के विषय घटादि पदार्थ हैं । ये घटादि चित्-शक्ति के सीधे विषय नहीं, परम्परा से हो सकते हैं । चित्रशक्ति