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सर्वदर्शनसंग्रहे४३. शतानि तत्र जायन्ते निश्वासोच्छवासयोर्नव ।
___ खखषट्कद्विकः संख्याहोरात्रे सकले पुनः ।। [जिस प्रकार वायु की स्वाभाविक गति के कारण प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के 'हंसः' मन्त्र की भावना से अजपाजप की सिद्धि होती है ] उसी प्रकार वायु के संचार से नाड़ियों का संचारण होने के समय, पुरुषार्थ की अभिलाषा करनेवाले पुरुषों को, [ पीत आदि ] विशिष्ट वर्णो से [युक्त बिन्दुओं के द्वारा ], पृथिवी आदि तत्वों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। [पृथिवी आदि तत्त्व पुरुषार्थ हैं। इनका ज्ञान आन्तर दृष्टि से हो सकता है। शरीर में कुछ बिन्दु हैं, जिनके वर्णों की कल्पना की गयी है उन्हीं से ये तत्त्व भली-भांति ज्ञात होते हैं। ] ___ इसे प्रामाणिक व्यक्तियों ने कहा है-[ इड़ा और पिंगला ] इन दोनों नाड़ियों में प्रत्येक नाड़ी से सूर्योदय से आरम्भ करके ढाई-ढाई घटियों तक [प्राणवायु का ] वहन होता है। अरघट्ट-घटी ( कुएं के रहट ) के भ्रमण की तरह ये दोनों नाड़ियां बार-बार [ बहती हैं । ] इस क्रिया से ढाई घटी में ९०० निश्वास और उच्छ्वास होते हैं । पूरे दिन-रात में तो २१६०० ( ख = ०, ख = ०, षट् = ६, क = १, द्वि= २, 'अङ्कस्य वामा गतिः' से उलटने पर २१६०० ) संख्या हो जाती है ।। ४२-४३ ॥'
४४. षट्त्रिंशद्गुरुवर्णानां या वेला भणने भवेत् ।
सा वेला मरुतो नाड्यन्तरे संचरतो भवेत् ॥ ४५. प्रत्येकं पञ्च तत्त्वानि नाड्योश्च वहमानयोः ।
वहन्त्यहनिशं तानि ज्ञातव्यानि यतात्मभिः । ४६. ऊध्वं वह्निरस्तोयं तिरश्चीनः समीरणः।
भूमिरर्धपुटे व्योम सर्वगं प्रवहेत्पुनः ॥ ४७. वायोर्वहरपां पृथ्व्या व्योम्नस्तत्त्वं बहेत्क्रमात् ।
वहन्त्योरुभयोर्नाड्योतिव्योऽयं क्रमः सदा ॥ छत्तीस दीर्घ वर्णों ( आ, ई, ऊ जैसे वर्ण ) के उच्चारण में जितना समय लगता है उतना ही समय वायु को नाड़ी में घूमने लगता है। [ इसे ही प्राण भी कहते हैं । ६प्राण = १ पल । ६० पल = घटी। एक घटी में ३६० श्वासोच्छ्वास या प्राण होते हैं। ॥ ४४ ॥ इन बहनेवाली नाड़ियों में प्रत्येक के पांच तत्त्व होते हैं, जो दिन-रात बहते रहते हैं, इन्हें योगी ही जान सकते हैं ॥ ४५ ॥ [ये नाड़ियां अपने अन्तर में स्थित सूक्ष्म पृथिवी आदि तत्त्वों में से किसी एक के अंश से ही चलती हैं । जब जो तत्त्व बहता है, तब कहते हैं कि उस अमुक तत्त्व से नाड़ी चल रही है । इसे योग से ही जान सकते हैं । अब नाड़ियों में बहनेवाले पांचों तत्त्वों का स्थान बतलाते हैं-] अग्नि तत्त्व ऊपर बहता है, जल-तत्त्व नीचे की ओर, वायु-तत्त्व तिरछा बहता है, पृथिवी-तस्व अर्ध पुट