________________
शांकर-दर्शनम्
६४३ तृतीयस्य प्रथमे जीवस्य परलोकगमनागमनविचारपुरस्सरं वैराग्यम् । द्वितीये त्वंपवतत्पदार्थपरिशोधनम् । तृतीये सगुणविद्यासु गुणोपसंहारः । चतुर्थे निर्गुणब्रह्मविद्याया बहिरङ्गान्तरङ्गाश्रमयज्ञशमादिसाधनम् । __ चतुर्थस्य प्रथमे ब्रह्मसाक्षात्कारेण जीवतः पापपुण्यक्लेशवैधुर्यलक्षणा मुक्तिः। द्वितीये मरणोत्क्रमणप्रकारः। तृतीये सगुणब्रह्मोपासकस्योत्तरमार्गः । चतुर्थे निर्गुणसगुणब्रह्मविदो विदेहकैवल्यब्रह्मलोकावस्थानानि । तदित्यं ब्रह्मविचारशास्त्राध्यायपादार्थसंग्रहः।
तृतीय अध्याय के प्रथम पाद में जीव के परलोक जाने या न जाने के प्रश्न पर विचार करके वैराग्य का प्रतिपादन किया गया है । द्वितीय पाद में [ 'तत्त्वमसि' ( छां० ६८७ ) महावाक्य के ] 'त्वम्' और 'तत्' पदों के अर्थ का अनुशीलन किया गया है । तृतीय पाद में सगुण ज्ञान के विषय में गुणों का उपसंहार ( अर्थात् अन्यत्र प्रतिपादित गुणों का संकलन ) किया गया है । [ जो लोग व्यावहारिक दृष्टि से सगुण की उपासना करते हैं । उनके दृष्टिकोण से उपास्य के गुणों का यहां पर संग्रह किया गया है । ] चतुर्थ पाद में निर्गुण ब्रह्म को विद्या (ज्ञान ) प्राप्त करने के लिए बहिरंग और अन्तरंग साधनों-जैसे आश्रम, यज्ञ ( बहिरंग ) तथा शम ( अन्तरंग ) आदि का निरूपण हुआ है।
चतुर्थ अध्याय के प्रथम पाद में यह बतलाया गया है कि ब्रह्म का साक्षात्कार कर लेने से जीते-जी ही व्यक्ति को वह मुक्ति ( जीवन्मुक्ति ) मिलती है जिसमें पाप, पुण्य और क्लेश का सर्वथा विनाश हो जाता है। द्वितीय पाद में मरण और ऊपर उठने ( स्वर्गगमन ) के प्रश्न पर विचार किया गया है । तृतीय पाद में सगुण ब्रह्म की उपासना करनेवाले पुरुष के मरणोत्तर मार्ग का वर्णन किया गया है । चतुर्थ पाद में निर्गुण ब्रह्मवेत्ता और सगुण ब्रह्मवेत्ता की क्रमशः विदेहमुक्ति और ब्रह्मलोक में अवस्थिति का निरूपण हुआ है।
. इस प्रकार ब्रह्म विचार-शास्त्र ( वेदान्तसूत्र ) के अध्यायों और पादों में वर्णित विषयों का संग्रह किया गया।
विशेष-प्रत्येक पाद में अधिकरण ( Topic ) तथा प्रत्येक अधिकरण में सूत्र हैं । नीचे प्रत्येक पाद के अधिकरणों और सूत्रों की संख्या दी जा रही है
पाद अधिकरण सूत्र प्रथम
अध्याय
११)
३१)
مه به س
४०
४३
१३५
-
ه م
~-
ه س »
-