________________
७१२
सर्वदर्शनसंग्रहे
प्रक्रिया हम पर लागू नहीं हो सकती । इसमें सफाई देने का स्थान ही नहीं है । हाँ, [ यदि अनुभव - विरोध आप 'इदम्' के अंश पर आधारित रजतज्ञान में मानें तो सफाई देंगे – ]
( २ ) यह दूसरा विकल्प ठीक नहीं क्योंकि जिस वस्तु का आधार 'इदम्' अंश से नियत ( पुरोवर्ती ) स्थान ही है तथा जो ( वस्तु ) चाकचिक्य ( जगमगाहट ) से युक्त है उसे रजत के ज्ञान का आधार न मानने से आपकी उक्ति ही अनुभव का विरोध करती है । [ आपका कथन गलत है । जिसकी आँखें दूषित हैं वह व्यक्ति सामने में पड़ी चीज को देखकर उसको जगमगाहट से अपने अन्तःकरण में उसकी वृत्ति बैठाता है । द्रव्य का निश्चय तो नहीं हो सकता- सीपी के रूप में अन्तःकरण की वृत्ति नहीं जगी है । जगी है तो 'इदम्' के रूप में पुरोवर्ती पदार्थ पर आधारित रजतज्ञान अनुभवसिद्ध है । यदि कोई नहीं मानता तो वही अनुभव के विरुद्ध जा रहा है । ] दूसरे, 'इदम् रजतम्' इस प्रकार समानाधिकरण होने के कारण पुरोवतों पदार्थ में अंगुलि का निर्देश करके भी प्रवृत्ति आदि व्यवहार देखे जाते हैं । [ कोई अंगुलि दिखाकर कहता है कि यह चाँदी है, तो उसे लेने के लिए हम चल पड़ते हैं । ]
यच्चोक्तम् - दोषाणामौत्सगिक कार्यप्रसवशक्तिप्रतिबन्धकतया विपरीतकारित्वं नास्तीति । तदप्ययुक्तम् । दावदग्धवेत्रबीजादौ तथा दर्शनात् । न च दग्धस्य वेत्रबीजत्वं नास्तीति मन्तव्यम् । श्यामस्य घटस्थ रक्ततामात्रेण घटत्वनिवृत्तिप्रसङ्गात् ।
ननु घटोऽयं घटोऽयमित्यनुवृत्तयोः प्रत्ययप्रयोगयोः सद्भावाद् घटत्वस्य सद्भाव इति चेत् न । अत्रापीदं वेत्रबीजमिति तयोः समानत्वात् ।
आपने यह भी कहा था कि दोष कार्योत्पादन की स्वाभाविक शक्ति का केवल प्रतिबन्ध कर सकते हैं ( देखिये -- अनु० ११ क ) अतः ये विपरीत कार्य उत्पन्न नहीं कर सकते ( अर्थात् दोष केवल आवरण करने में समर्थ हैं विक्षेप में नहीं )। यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि दावाग्नि से जले हुए बीज में वह शक्ति (विपरीत कार्योत्पादन की ) देखते हैं । आप यह न सोचें (जैसा कि उक्त स्थल पर हमारी शंका का उत्तर देते हुए किया था ) कि जल जाने पर वह बेंत का बीज रहा ही नहीं। ऐसा यदि होता तो काले ( कच्चे ) घड़े में पो पर यदि लाली आने लगती तो बस इतने से ही वह घट-संज्ञा से रहित हो जाता । [ इससे सिद्ध हुआ कि परिमाण होने के कारण स्वाभाविक धर्म की हानि नहीं होती । न का बी जलने पर भी बेंत का बीज ही है । अतः वह विपरीत कार्य उत्पन्न करने में समर्थ है ही । ]
अब यह शंका की जा सकती है कि [ उपर्युक्त घट के उदाहरण में ] यह ( कच्चा ) मां घट है, वह (पका ) भी घट ही है - यहाँ [ घटविषयक ] प्रतीति और व्यवहार दोनों