________________
सर्वदर्शनसंग्रहे
( १८. माया और अविद्या की समानता )
ननु मायाविद्ययोः स्वाश्रयाव्यामोहहेतुत्व- तदभावाभ्यां मेदस्य जागरूकत्वेनाविद्यामयत्वे वक्तव्ये मायामयत्वोक्तिरारोप्यस्यायुक्तेति चेत् - तदयुक्तम् । अनिर्वचनीयत्वतत्त्वाभासप्रतिबन्धकत्वादिलक्षणजातस्य मायाविद्ययोः समानत्वात् ।
प्रश्न है कि माया और अविद्या में भेद जागृत है क्योंकि उनमें माया तो अपने आश्रय ( कर्ता, द्रष्टा ) को व्यामोह ( भ्रम ) में नहीं डालती, [ कर्ता की इच्छा का अनुसरण करती है, उल्लंघन नहीं । [ दूसरी ओर अविद्या उससे भिन्न है । [ सोपी-चांदी में चांदी का उपादान - कारण अविद्या ही है क्योंकि चांदी देखनेवाले की भ्रान्ति के कारण व्यामोह तो है ही । द्रष्टा की इच्छा से वह नहीं चलती क्योंकि द्रष्टा की इच्छा रहे या नहीं - अविद्या से चाँदी की प्रतीति हो ही जायगी। ] इसलिए आरोप्य वस्तु ( चांदी ) को आप अविद्या - मय कहें, मायामय कहना असङ्गत है ।
[ इसका उत्तर है कि ] यह प्रश्न ही असङ्गत है । माया और अविद्या दोनों समान रूप से अनिर्वचनीय हैं तथा तत्त्व की प्रतीति के प्रतिबन्धक आदि हैं ।
७२८
किं चाश्रयशब्देन द्रष्टोच्यते कर्ता वा ? नाद्यः । मन्त्रौषधादिनिमित्तमायादर्शिनस्तस्य व्यामोहदर्शनात् । न द्वितीयः । विष्णोः स्वाश्रितमाययव रामावतारे मोहितत्वेन तत्र मायावित्वस्याप्रयोजकत्वात् । बाधनिश्चयमन्त्रादिप्रतीकारबोधयोरेव प्रयोजकत्वात् । अपरथा पङ्ग्ग्बन्धवत्कर्तापि व्यामुद्येत ।
[ वेदान्ती आगे पूछते हैं कि आपने जो ऊपर माया को अपने आश्रय के व्यामोह का अहेतु माना है, उसमें ] आश्रय शब्द से क्या अर्थ लेते हैं - [ मात्रा के परिणामस्वरूप वृक्ष, पशु आदि को ] जो देखता है वह मायाश्रय है या जो माया का निर्माण करता है वह मायाश्रय है ?
द्रष्टा तो माया का आश्रय नहीं हो सकता क्योंकि [ तान्त्रिक लोगों के द्वारा प्रयुक्त ] मन्त्रों का औषधियों के योग से बनी माया ( घोड़ा, हाथी, रुपयों की वर्षा आदि इन्द्रजाल ) को देखनेवाला व्यक्ति व्यामोह में पड़ जाता ही है । [ तब तो आपने जो पूर्वपक्ष के आसन में घोषणा की है कि माया व्यामोह उत्पन्न नहीं करती, उस उक्ति का क्या होगा ? ]
कर्ता भी माया का आश्रय नहीं हो सकता क्योंकि विष्णु भगवान् ( जो माया के कर्ता हैं) अपने ही आश्रय में ही रहनेवाली माया के द्वारा मोहित हुए थे ( व्यामोह में पड़े थे ) इसलिए [ अपने ऊपर आश्रित व्यामोह के अभाव में ही कोई ] मायावी ( माया का रचविता ) होगा, ऐसी बात नहीं है ( = माया का निर्माता होने पर भी व्यामोह में कोई पड़ सकता है ) । [ तालर्य यह है कि माया के कर्ता और द्रष्टा दोनों को व्यामोह होता है।