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सर्वदर्शनसंग्रहेभ्रम प्रतीत होता है ]; दूसरे, [ उक्त भ्रम के आधार पर जो रजत-ग्रहण की प्रवृत्ति लोगों में देखते हैं | उसके ग्रहण की इच्छा से लोगों में वह प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी।
[अब ये शून्यवादी माध्यमिक लोग कहेंगे कि वासना असत् के प्रकाशन को शक्ति रखती है-असत् होने पर भी सत् की तरह प्रकाशित होती है। उसका यह प्रकाशन अनादिकाल से चला आ रहा है। वह वासना ही असत् विज्ञान को सत् के रूप में प्रकाशित करती है । जिस तरह वह स्वयं प्रकाशित होती है उसी तरह विज्ञान में भी असत्-प्रकाशन को शक्ति दे देती है। स्वप्न के दृष्टान्त से हम जान लेते हैं कि विज्ञान में असत्-प्रकाशन की शक्ति है । जैसे स्वप्नावस्था में असत् पदार्थों का प्रकाशन होता है . उसी तरह विज्ञान भी असत्-पदार्थों का प्रकाशन करता है । इसे ही कहते हैं- [ यह शंका हो सकती है कि वासना आदि अपने कारणों की शक्ति से प्राप्त तथा [ स्वप्न के ] दृष्टान्त से सिद्ध एक विशेष स्वभाव विज्ञान को मिलता है और वह है-असत् पदार्थों के प्रकाशन की क्षमता । उसे असत् के प्रकाशन की शक्ति कहें, अविद्या कहें या संवृति ( Concealment ) कहें, [ कोई अन्तर नहीं क्योंकि ] तीनों पर्याय ही हैं। इसीलिए अविद्या के कारण ही असत पदार्थ प्रतीत होते हैं। यदि ये ( बौद्ध ) ऐसा कहें तो हम कहेंगे कि इस प्रकार कहना भी असम्भव है । [ कारण आगे देंगे।]
शक्यस्य दुनिरूप्यत्वात् । किमत्र शक्यं कार्य ज्ञाप्यं वा ? नाद्यः । असतः कारणत्वानुपपत्तेः । न द्वितीयः । शक्यस्य कारणत्वेनाङ्गीकृतत्वात् । ज्ञानादन्यस्य ज्ञानस्यानुपलब्धश्च । उपलब्धौ वा तस्यापि ज्ञाप्यत्वेन ज्ञापकान्तरापेक्षायामनवस्थापत्तेश्च ।
शक्य ( घटादि ) पदार्थ का निरूपण करना ही कठिन है । [ असत्-प्रकाशन की शक्ति जिसमें है वह विज्ञान शक्त कहलाता है । वह विज्ञान अपनी शक्ति से जिन-जिन पदार्थों का प्रकाशन करता है वे शक्य हैं, जैसे-घट, पट, वृक्ष आदि । ] क्या यहाँ पर शक्य पदार्थ कार्य ( Product, उत्पन्न पदार्थ ) है ] दण्डादि का कार्य जैसे घट है वैसा ] या ज्ञाप्य [ उत्पन्न ज्ञान का विषय-जैसे दीपादि का ज्ञाप्य घट है वैसा ] है ?
पहला विकल्प तो होगा ही नहीं क्योंकि असत् वस्तु ( विज्ञान भी तो असत् ही हैसर्व शून्यम् । ) घटादि ( शक्य कार्य ) का कारण नहीं बन सकती।
दूसरा विकल्प [ कि शक्य ज्ञाप्य है ] भी ठीक नहीं क्योंकि शक्य पदार्थ को कारण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। [ यदि शक्य घटादि पदार्थ ज्ञाप्य हैं तो विज्ञान इनका ज्ञापक है । ज्ञापक और ज्ञाप्य में सीधा सम्बन्ध है नहीं । जैसे दीपक ( ज्ञापक ) घट आदि का ज्ञान उत्पन्न करता है वैसे ही विज्ञान घटादि का ज्ञान उत्पन्न करता है । तो, शक्य ( घट ) कारण नहीं हो सका । ] दूसरे एक ज्ञान ( विज्ञान से उत्पन्न विज्ञान ) से भिन्न दूसरा ( घट के विषय में ) ज्ञान पाया नहीं जाता। यदि आप [ हठपर्वक ] कहें कि