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भोकर-वर्शनम्
७१५ ही नहीं हो जाता । जिस तरह आप के मत में ऐसा होने पर भी प्रवृत्ति नहीं रुकती, उसी तरह हमारे मत में भी [ व्यभिचरित होने पर भी मार्ग बन्द नहीं होता ] क्योंकि हम दोनों के योगक्षेम ( सम्पाद्य विषय और प्रणाली ) समान ही हैं। [ वेदान्ती लोग विषय के यथार्थ रूप में न होने पर भी ज्ञान मानते हुए विषय का व्यभिचार ग्रहण करते हैं । मीमांसक लोग व्यवहार के यथार्थ न होने पर भी ज्ञान को उस व्यवहार का प्रयोजक मानते हैं और ज्ञान में व्यवहार का व्यभिचार मानते हैं। दोनों को अविश्वास तो है ही-यह दोष दोनों में है । कोई गङ्गा में तैरते समय डूब गया तो कोई भी गङ्गा में नहीं तेरेगा, ऐसी बात नहीं देखते । अतः कहीं पर व्यभिचार पाकर प्रवृति सर्वत्र रुक ही नहीं जाती- यह हम दोनों वादी मानते हैं । ]
तौतातित (कुमारिल भट्ट ) के मत का अनुसरण करके विधियों की विवेचना करते हए आचार्य वाचस्पति मिश्र ने न्यायकणिका में प्रतिपादन किया है कि [ अपूर्व अर्थ का ] बोधक होने के कारण विधि को अपने आप में प्रामाणिक मानते हैं न कि [ फल का] व्यभिचार होने के कारण। [जहाँ पर वाचस्पति ने इसका प्रतिपादन किया है उसका विषय कुछ इस प्रकार का है-चार्वाकपक्षी शंका करते हैं कि वेद में विहित पुत्रकाम इष्टि सम्पन्न कर लेने पर भी कहीं-कहीं पुत्र की उत्पत्ति नहीं देखते अतः फल का व्यभिचार ( Inconsistency ) देखकर सम्बद्ध विधि को अप्रामाणिक मानें। इसी पर वाचस्पति का कहना है कि विधि स्वतः प्रमाण है क्य कि अपूर्व विधि है-इसके प्रतिपादित अर्थ की प्राप्ति किसी दूसरे साधन से नहीं होती। फल के व्यभिचार से इसके प्रामाण्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।] इसलिए अविश्वास ( अनाश्वास ) की शंका का कोई स्थान ही नहीं।
(१५. माध्यमिक बौद्धों का खण्डन-भ्रमविचार ) ननु माध्यमिकमतावलम्बनेन रजतादिविभ्रमालम्बनमसदिति चेत्तदुक्तम् । असतोऽपरोक्षप्रतिभासायोग्यत्वात् । तदुपादित्सया प्रवृत्त्यनुपपत्तेश्च । __ ननु विज्ञानमेव वासनादिस्वकारणासामर्थ्यासादितदृष्टान्तसिद्धस्वभावविशेषमसत्प्रकाशनसमर्थनमुपजातम् । असत्प्रकाशनशक्तिरविद्या संवृतिरिति पर्यायाः । तस्मादविद्यावशादसन्तो भान्तीति चेत् तदपि वक्तुमशक्यम् ।
माध्यमिक-मत का अवलम्बन लेने पर यह शंका हो सकती है कि रजत आदि के विभ्रम का आधार ( सीपी ) ही असत् है । [ माध्यमिक बौद्धों ( Nihilists ) के मत से सभी पदार्थ शून्य हैं अतः सीपी भी तो असत् ही है। ] इस का उत्तर तो दे दिया गया है कि एक तो, असत् अपरोक्ष ( प्रत्यक्ष ) में प्रतीत हो नहीं सकता [ जब कि सीपी में रजत का