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सर्वदर्शनसंग्रहे
साथ नी-धातु की संगति का ग्रहण करता है । 'राम ने रावण को मारा' यह वाक्य सिद्ध है अतः किसी व्यवहार की प्रतीति इसमें नहीं होगी । ऐसे वाक्यों से बालक शक्तिग्रहण नहीं कर सकता । उसी तरह जिस शब्द से कार्य का बोध नहीं होता तथा जो सिद्ध अर्थ का प्रतिपादक है ऐसे शब्द से शक्तिग्रहण नहीं होता तो उक्त सिद्ध अर्थ में प्रयुक्त प्रामाणिक नहीं हो सकता । इसलिए सिद्ध ब्रह्म के बोधक 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' ( ते० २।१।१ ) इत्यादि वाक्यों को प्रमाण नहीं मान सकते । ]
कार्य ( कर्तव्य ) के अर्थ में शब्दों की संगति का ग्रहण करना सम्भव नहीं है इसलिए उन्हें सिद्ध अर्थ का बोधक नहीं मान सकते और न उस अर्थ में उन्हें प्रामाणिक ही मान सकते हैं।
तुरङ्गत्व के रूप में जिसको संगति का ग्रहण किया गया है वह तुरङ्ग ( घोड़ा ) शब्द गोत्व का बोधक नहीं हो सकता और न उस अर्थ में प्रामाणिक ही माना जा सकता । इसलिए यह निष्कर्ष निकला कि जिन शब्दों की संगति कार्य के अर्थ में गृहीत को गई है उनकी प्रामाणिकता कार्य ( साध्य, कर्तव्य ) के रूप में ही होती है, [सिद्ध अर्थ में नहीं । साध्य अर्थ संकेतग्रह होने से साध्य अर्थ ही प्रामाणिक होगा । सिद्ध अर्थ में संकेतग्रह होता ही नहीं, अतः उसमें प्रामाणिकता मानना ठीक नहीं । मीमांसक केवल विधिवाक्यों को, जिनमें साध्य का निर्देश रहता है, प्रामाणिक मानते हैं। ]
ननु मुखविकासादिलिङ्गाद् हर्षहेतुं प्रसिद्धार्थमनुमाय यत्र शब्दस्य संगतिग्रहो यथा पुत्रस्ते जात इत्यादिषु, तत्रावश्यं कार्यमन्तरेणैव शब्दस्य सिद्धेऽर्थे प्रामाण्यमाश्रीयत इति चेत्-न । पुत्रजन्मवदेव प्रियासुखप्रसवादेरनेकस्य हर्षहेतोरुपस्थीयमानत्वेन परिशेषावधारणानुपपत्तेः। पुत्रस्ते जात इत्यादिषु सिद्धार्थपरेषु प्रयोगेषु द्वारं द्वारमित्यादिवत्कार्याध्याहारेण प्रयोगोपपत्तेश्च ।
कहीं-कहीं सिद्ध वाक्य से भी शक्तिग्रह होता है, इस आशय से शंका करते हैं-] अब कोई यह कह सकता है कि जैसे तुम्हें पुत्र हुआ है, इस प्रकार के वाक्यों में मुख-विकास आदि साधनों को देखकर हर्ष के कारण का, जो प्रसिद्ध तथ्य है, अनुमान करके जहाँ शब्द की संगति का ग्रहण करते हैं वहाँ तो कार्य ( साध्य, कर्तव्य ) न रहने पर भो, सिद्ध अर्थ में शब्द की प्रामाणिकता मानते हैं । [ शंका का यह आशय है-राम ने मोहन को लक्ष्य करके एक वाक्य कहा कि तुम्हें पुत्र हुआ है। यह वाक्य किसी कर्तव्य का तो निर्देश करता नहीं है, सिद्ध वाक्य है । इसे सुनकर मोहन का मुख प्रसन्न हो गया। इस लिङ्ग से राम निश्चय करता है कि तुम्हें पुत्र हुआ है, इस वाक्य का अर्थ है-पुत्र का जन्म होना। शब्दों का अर्थ राम को लग गया-संगति का ग्रहण हो गया । ऐसा नहीं सोचें कि किसी दूसरे कारण से -जैसे परीक्षा में प्रथम होने, नौकरी पाने आदि से-राम का मुख प्रसन्न