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. शांकर-पर्शनम्
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( Expression ) औपचारिक ( लाक्षणिक ) है। [ यद्यपि आत्मा और देह में अभेद की प्रतीति होती है फिर भी किसी तरह भेद की कल्पना करके इसका निर्वाह कर लें] जैसे 'राहोः शिरः' ( राहु का सिर ) इस वाक्य में करते हैं। [ राहु ही सिर है और सिर ही राहु, फिर भी अन्य प्राणियों की तरह राहु के शरीर की कल्पना करके उसके शरीर के इस विशेष भाग सिर का बोध करते हैं। वैसे ही 'मम शरीरम्' में करें]।
विशेष-आत्मा और शरीर को एक माननेवाले वेदान्ती हैं जो यह इसलिए स्वीकार करते हैं कि इस भ्रम ज्ञान को हटाने के लिए ब्रह्म जिज्ञासा की आवश्यकता सिद्ध करें। आत्मा और शरीर में भेद माननेवाले पूर्वपक्षी हैं जो इसलिए मानते हैं कि दोनों में स्पष्ट प्रतीत होनेवाला भेद रहने के कारण ब्रह्मजिज्ञासा की निरर्थकता सिद्ध करें। यद्यपि अभी शंकर की ओर से उत्तरपक्ष चल रहा है परन्तु जहाँ-तहाँ समस्याओं के रूप में पूर्वपक्ष के दर्शन भी हमें हो रहे हैं। अब शंकराचार्य की तरफ से आत्मा और शरीर की अभेदप्रतीति का साधक प्रमाण दिया जा रहा है। स्मरणीय है कि यह केवल प्रतीति है, वास्तविकता या परमार्थ नहीं।
मम शरीरमिति ब्रुवाणेनापि कस्त्वमिति पृष्टेन वक्षःस्थलन्यस्तहस्तेन शृङ्गग्राहिकयाऽयमहमिति प्रतिवचनस्य दीयमानत्वेन देहात्मप्रत्ययस्य सकलानुभवसिद्धत्वात् । तदुक्तम्
४. देहात्मप्रत्ययो यद्वत्प्रमाणत्वेन कल्पितः।
लौकिकं तद्वदेवेदं प्रमाणं त्वात्मनिश्चयात् ॥ इति । तथा च व्यापकस्य भेदभानस्य निवृत्तेाप्यस्य गौणत्वस्य निवृत्तिरिति निरवद्यम् ।
'मेरा शरीर' ऐसा कहनेवाले पुरुष से भो जब यह पूछा जाता है कि तुम कौन हो [ यह तो तुम्हारा शरीर हुआ ], तो वह अपने वक्षःस्थल पर हाथ रखकर शृङ्गग्राहिका न्याय से ( = पशुओं को सींग पकड़-पकड़कर उनका निर्देश करना कि यह ऐसा है ), यही उत्तर देता है कि मैं यह हैं। इस तरह सबों के अनुभव से यही बात सिद्ध होती है कि देह आत्मा है, यह प्रतीति होती ही है। इसे कहा भी है-'जिस प्रकार आत्मा के रूप में देह की प्रतीति ( Apprehension ) प्रामाणिक मानी जाती है उसी प्रकार लौकिक प्रमाण तभी तक है जब तक आत्मा का निश्चय ( साक्षात्कार ) नहीं हो जाता।' [आत्म साक्षात्कार हो जाने पर, लौकिक या व्यावहारिक जगत् में प्रमाण के रूप में प्रतीत होनेवाले पदार्थ, मिथ्या हो जाते हैं केवल ब्रह्म या आत्मा की ही सत्ता रह जाती है।] ___ इसलिए इस व्यापक भेदज्ञान के मिट जाने से उस ( भेदज्ञान ) के द्वारा व्याप्य गौणता को भी निवृत्ति हो जाती है, यह बिल्कुल स्पष्ट है। [ ऊपर दिखा चुके हैं कि गौणना