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सर्वदर्शनसंग्रहे(१) प्रस्तुत शास्त्र विषय और प्रयोजन से युक्त है । ( प्रतिज्ञा ) ( २ ) क्योंकि यह अविद्यासूचक बन्धन की निवृत्ति करता है । ( हेतु)
( ३ ) जिस प्रकार सोकर उठने पर बोध होता है । ( उदाहरण ) [ अब दृष्टान्त का स्पष्टीकरण होगा।]
यथा स्वप्नावस्थायां मायापरिकल्पितयोषादिकृतबन्धनिवर्तकस्य सुप्तोत्थितबोधस्य मन्दिरमध्ये सुखेन शय्यायामवतिष्ठमानो देहो विषयः। तस्य सुप्तबोधेनानिश्चयात् स्वप्नमायाविज़म्भितानर्थनिवृत्तिः प्रयोजनम् । एवं मननादिजन्यपरोक्षज्ञानद्वारेण आध्यासिककर्तृत्वभोक्तृत्वाद्यनर्थनिषेधकस्य शास्त्रस्य सच्चिदानन्दैकरसं प्रत्यगात्मभूतं ब्रह्म विषयः। तस्याहमनुभवेनानिश्चयात् । अध्यासनिवृत्तिः प्रयोजनम् । __ जैसे स्वप्न की अवस्था में किसी स्त्री के द्वारा माया से कल्लित बन्धन हो जाय तो उसकी निवृत्ति सोकर उठने पर जो बोध होता है उसी से सम्भव हैं । [ इस अवस्था में बोध का] विषय है वह शरीर जो किसी कोठरी में सुख से बिछावन पर लेटा हुआ है। उसी देह के विषय में सोये हुए व्यक्ति का ज्ञान निर्णय नहीं कर पा रहा है [ और जागने पर उसी का बोध निश्चित हो जाता है। ] स्वप्न को माया से उत्पन्न (विम्भित = व्याप्त ) अनर्थ का निवारण करना ही इस [ बोध ] का प्रयोजन है।
ठीक इसी तरह मननादि से उत्पन्न परोक्ष-ज्ञान के द्वारा, अध्यास से उत्पन्न कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि अनर्थों का निवारण शास्त्र ( वेदान्त-शास्त्र ) से होता है । उस शास्त्र का विषय ब्रह्म है जो [ और कोई नहीं, ] प्रत्यगात्मा या जीव ही है तथा जिसका एकमात्र रस ( आस्वादन, अनुभूति ) सत्, चित् और आनन्द है। इसी आत्मा के विषय में 'अहम्' के अनुभव के द्वारा निश्चय नहीं किया जा सकता। अध्यास ( Superimposition ) की निवृत्ति ही शास्त्र का प्रयोजन है।
तथा चाफलत्वादिति हेतुरसिद्ध इति सिद्धम् । तदुक्तम्५. श्रुतिगम्यात्मतत्त्वं तु नाहंबुद्धयावगम्यते ।
अपि खे कामतो मोहो नात्मन्यस्तविपर्यये ॥ इति । इतोऽयमसन्दिग्धत्वादिति हेतुरप्यसिद्ध इति सिद्धम् । ___ इस प्रकार, [ पूर्वपक्षी ने जो 'ब्रह्म की जिज्ञासा नहीं करनी चाहिए' इसकी सिद्धि के लिए ] 'क्योंकि उसका कोई फल नहीं' आदि हेतु दिया था वह असिद्ध है [ क्योंकि ब्रह्मजिज्ञासा का फल (प्रयोजन ) हम दिखला चुके हैं । ] इसे कहा है-'जो आत्मतत्त्व एकमात्र श्रुति के द्वारा जाना जा सकता है वह 'अहम्' की बुद्धि ( ज्ञान, प्रतीति ) से ज्ञात नहीं हो सकता। [ अहम् की प्रतीति अध्यास पर आधारित है जिसमें अहंकार ( Ego) और आत्मा ( Soul ) का तादात्म्य कर दिया गया है। आत्मा यद्यपि अप्रत्यक्ष है फिर