________________
शांकर-दर्शनम्
( ९. ब्रह्म की सिद्धि के लिए आगम प्रमाण )
नवित्थंभूते ब्रह्मणि किं प्रमाणं प्रत्यक्षमनुमानमागमो वा ? न कदाचित्तत्र प्रत्यक्षं श्रयते । अतीन्द्रियत्वात् । नाप्यनुमानम् । व्याप्तस्य लिङ्गस्याभावात् । नाप्यागमः । 'यतो वाचो निवर्तन्ते' ( तै० २।१।१ ) इति श्रुत्यैवागमगम्यत्वनिषेधात् । उपमानादिकमशक्यशङ्कम् । नियतविषयत्वात् तस्माद् ब्रह्मणि प्रमाणं न सम्भवतीति चेत्- ।
६७३
शंका- यह पूछा जा सकता है कि उपर्युक्त ब्रह्म के लिए प्रमाण क्या है- प्रत्यक्ष, अनुमान या आगम ? कभी भी प्रत्यक्ष को तो प्रमाण नहीं ही मान सकते, क्योंकि ब्रह्म इन्द्रियातीत है [ और प्रत्यक्ष की प्राप्ति इन्द्रियों की पहुँचवाले पदार्थों में ही होती है ] । अनुमान भी नहीं लग सकता, क्योंकि [ ब्रह्म से ] व्याप्त किसी भी लिंग ( साधन ) की सम्भावना नहीं है | आगम प्रमाण भी नहीं लगेगा, क्योंकि 'जहां से वाणी लौट आती है' ( ० २1१1१ ) आदि श्रुति के द्वारा ही, ब्रह्म आगम से ज्ञेय है, इसका निषेध किया गया है ।
उपमान आदि की शंका तक नहीं की जा सकती, क्योंकि इनका विषय ( प्रयोगक्षेत्र, Jurisdiction ) बिल्कुल सीमित है । इसलिए ब्रह्म के लिए कोई भी प्रमाण सम्भव नहीं है ।
मैवं वोचः । प्रत्यक्षाद्यसम्भवेऽपि आगमस्य सत्त्वात् । 'यतो वाचो निवर्तन्ते इति वाग्गोचरत्वनिषेधात्कयमेतदिति चेत् — श्रुतिरेव निषेधति वेदान्तवेद्यत्वं ब्रह्मणः श्रुतिरेव विद्यते । न हि वेदप्रतिपादितेऽर्थेऽनुपपन्ने वैदिकानां बुद्धिः खिद्यते । अपि तु तदुपपादनमार्गमेव विचारयति । तस्मादुभयमपि प्रतिपादनीयम् ।
समाधान - ऐसा न कहें । यद्यपि [ ब्रह्म की सिद्धि के लिए ] प्रत्यक्षादि प्रमाण सम्भव नहीं हैं किन्तु आगम को तो सत्ता है। यदि आप कहें कि 'यतो वाचो निवर्तन्ते' ( जहां से वाणी लौट आती है ) इसमें ब्रह्म के वाणी के गोचर ( वाणी से ज्ञेय, प्रकाश्य ) होने का निषेध किया गया है, तो हम उत्तर देंगे कि श्रुति ही ब्रह्म के वेदान्तों ( उपनिषदों ) के द्वारा ज्ञेय होने का निषेध भी करती है और श्रुति ही विधान भी करती है । [ परन्तु इससे घबराना नहीं है । ]
।
वेद में प्रतिपादित अर्थ जब असिद्ध होता है तब उससे वैदिकों की बुद्धि खिन्न नहीं होती, बल्कि उस अर्थ की सिद्धि का रास्ता खोजती है । इसलिए दोनों प्रकार की श्रुतियों का प्रतिपादन ( साधन ) करना चाहिए ।
विषयत्वनिषेधकानि वाक्यानि वाक्यजन्यवृत्तिव्यक्तस्फुरणलक्षणफला
४३ स० सं०