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शांकर-दर्शनम्
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दूसरी आत्मा को मिल जायगा, क्योंकि फल पाने तक तो वह आत्मा बदल ही जायगी। दूसरी आत्मा को जिसने वैसा काम नहीं किया था, वह फल मिल जायगा।] ___ अब यदि इस दोष से बचने की इच्छा से आप यह सिद्ध कर दें कि अवयवों का समुदाय आत्मा है, तब हमारे इन विकल्पों का उत्तर दें-[ आत्मा में चैतन्य होता है । ] तो चैतन्य प्रत्येक अवयव में है या अवयव में है या अवयवों के समूह में ?
पहला विकल्प तो ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसी दशा में बहुत से चेनन हो जायंगे, वे तु-त, मैं-मैं करते हए प्रधानता प्राप्त करने के लिए लड़ने लगेंगे-उनमें एक मति तो रहेगी ही नहीं, इसलिए एक ही समय में वे विरुद्ध दिशाओं की क्रिया करने लगेंगे। साथ-साथ शरीर पर भी विपत्ति पड़ेगी कि ] या तो वह विदीर्ण ( टुकड़े-टुकड़े ) हो जायगा या निष्क्रिय ही हो जायगा-दोनों में से एक दशा तो उसकी हो ही जायगी। [ यदि आत्मा चेतन अवयवों का समूह है तो सभी अवयवों की सामर्थ्य समान होगी, भले ही उनका स्वभाव भिन्न-भिन्न होगा । आपस में विमति होना अनिवार्य है । एक पूर्व की ओर जायगा, दूसरा पश्चिम की ओर । ये गतियाँ एक ही शरीर में होंगी। एक ही शरीर दो विरुद्ध दिशाओं में नहीं जा सकेगा-दोनों ओर की खीचतान से देह फट जायगी । यदि दोनों दिशाओं में समान गति हुई तो दोनों में से किसी तरफ देह नहीं जा सकेगी। निदान उसे क्रिया रहित होना पड़ेगा।]
द्वितीयेऽपि संघातापत्तिः किं शरीरोपाधिको स्वाभाविको यादृच्छिकी वा ? नाद्यः । एकस्मिन्नवयवे छिन्ने चिदात्मनोऽप्यवयवश्छिन्न इत्यचेतनत्वापातात् । न द्वितीयः। अनेकेषामवयवानामन्योन्यसाहित्यनियम दर्शनात् । न तृतीयः संश्लेषवद्विश्लेषस्यापि यादृच्छिकत्वेन सुखेन वसतामकस्मादचेतनत्वप्रसङ्गात्।
यदि दूसरी ओर यह कहते हैं कि समूह में ही चेतनता है तो प्रश्न है कि अवयवों का यह संघात कसे होता है ? क्या ( सिद्ध ) शरीर को ध्यान में रखकर यह संघात होता है या स्वभावतः ही होता है या मनमाने ढङ्ग से होता है ? [पहले विकल्प का अर्थ है कि शरीर के जितने अवयव हैं उतने आत्मा के भी हैं । शरीर चूंकि एक है इसलिए आत्मा भी शरीर के अनुसार ही संहत रूप में है। दूसरा विकल्प बतलाता है कि सभी अवयव प्रकृति से ही आपस में मिले हुए हैं। इसमें नियम है। तीसरा विकल्प बिना किसी नियम के मनमाने ढंग से अवयवों का संघात बतलाता है । जब इच्छा हुई मिले, न हुई न मिले।] ____ इसमें पहला विकल्प इसलिए ठीक नहीं है कि शरीर का एक अवयव कट जाता है तो आत्मा का भी वह अवयव कट जायगा। इसलिए जीव पर अचेतन का आरोप हो जायगा। [ जीव चेतन है, अवयवों का समूह है। एक अवयव के नष्ट होने पर समूह का ही उच्छेद होगा-जीव का विनाश होगा, उसे शरीर की तरह ही अचेतन