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अविद्या
शांकर-पर्शनम् प्रकृति (१०) प्रकृति में कोई शक्ति वस्तु को (१०) अविद्या में आवरण और विक्षेप
छिपाने के लिए नहीं है। ___ नाम की दो शक्तियाँ हैं। (११) प्रकृति स्वतन्त्र तत्त्व होने के कारण | ( ११ ) अविद्या स्वतन्त्र तत्त्व न होने पर अनादि है।
भी अनादि है। (१२) प्रकृति के कार्य परिणामवाद पर (१२ ) अविद्या के कार्य विवर्तवाद पर आधारित हैं।
आधारित हैं। (१३) पुरुष को मुक्ति प्रकृति-पुरुष में भेद | ( १३ ) जीव की मुक्ति अविद्या के नाश के ज्ञान से होती है।
__ से ब्रह्म का शुद्ध रूप में ज्ञान से
होती है। (१४) प्रकृति सभी जीवों के लिए एक ( १४ ) अविद्या सभी जीवों में अलगही है।
- अलग है। यहाँ केवल कुछ भेदों को ही स्थापित करने की चेष्टा की गई है। विद्वानों को उन दर्शनों में दिये गये विचारों से अधिक तथ्य भी मिल सकेंगे।
नन्वविद्यापक्षेऽप्येष दोषः प्रादुःष्यादिति चेत्-तदेतत्प्रत्यवस्थानमस्थाने । न हि वयं प्रधानवदविद्यां सर्वेषु जीवेष्वेकामाचक्ष्महे येनैवमुपालभ्येमहि । अपि त्वियं प्रतिजीवं भिद्यते । तेन यस्यव जीवस्य विद्योत्पद्यते तस्यवाविद्या समुच्छिद्यते । नान्यस्य । भिन्नायतनयोविरोधाभावात् ।
अतो न समस्तसंसारोच्छेदप्रसङ्गदोषः। तस्मात्परिणामः परित्यक्तव्यः । स्वीकर्तव्यश्च विवर्तवावः।
अब यदि कोई पूर्वपक्षी कहे कि अविद्या को स्वीकार करने में भी तो [ प्रकृति के ऊपर लगाया गया ] उक्त दोष आ ही जायगा, तो हमारा उत्तर है कि यहां पर उसका विचार करना ठीक नहीं । [ अविद्या में दोष लगाना ठीक नहीं। ] हम लोग प्रधान की तरह ही अविद्या को सभी जीवों में एक ही नहीं मानते, जिसके कारण आप लोग हम पर इस तरह उपालम्भ ( उलाहना, दोषारोपण ) की वर्षा कर रहे हैं । अपितु अविद्या सभी जीवों में भिन्न-भिन्न है । [ जिस जीव को अविद्या नष्ट हुई वह अपने स्वरूप अर्थात् ब्रह्म में लीन हो गया। ] इसलिए जिस जोव की विद्या ( ज्ञान ) उत्पन्न होती है, उसी जीव की अविद्या नष्ट होती है, दूसरे जीव को नहीं । इन दोनों ( जीवों की अविद्याओं) का आधार भिन्नभिन्न है, इसलिए विरोध को सम्भावना नहीं । [ एक जीव की अविद्या दूसरे जीव को अविद्या से अलग है । यदि दोनों एक ही रहती तो एक की अविद्या के नष्ट होने पर दूसरे को अविद्या भी नष्ट हो जाती- दूसरे को ही क्यों पूरे संसार के जीव को अविद्या नष्ट