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पातम्बर-
मन्द
(कोष्ठ ) में तथा आकाश-तत्त्व चारों तरफ बहता है ।। ४६ ॥ [ अब इनके बहने का क्रम बतलाते हैं-] दोनों बहनेवाली नाड़ियों का यह क्रम सदा जानना चाहिए कि क्रमशः वायु, अग्नि, जल, पृथिवी और आकाश के तत्त्व बहते हैं ।। ४७ ॥
४८. पृथ्व्याः पलानि पंचाशच्चत्वारिंशत्तयाम्भसः ।
अग्नेस्त्रिशत्पुनर्वायोविशतिर्नभसो दश। ४९. प्रवाहकालसंख्येयं हेतुस्तत्र प्रदर्श्यते।
पृथ्वी पञ्च गुणा तोयं चतुर्गुणमथानलः॥ ५०. त्रिगुणो द्विगुणो वायुर्वियवेकगुणं भवेत् ।
गुणं प्रति दश पलान्युयां पञ्चाशदित्यतः॥ ५१. एककहानिस्तोयादेस्तथा पञ्च गुणाः क्षितेः।
गन्धो रसश्च रूपं च स्पर्शः शब्दः क्रमादमी ॥ पृथिवी-तत्त्व पचास पलो तक रहता है, जल-तत्त्व चालीस पलों तक, अग्नि-तत्त्व तीस पलों तक, वायु-तत्त्व बीस पलों तक तथा आकाश-तत्त्व दस पलों तक रहता है । [ इनके बहने का क्रम पहले के जैसा ही है-पहले वायु-तत्त्व, फिर अग्नि-तत्त्व आदि ।] ॥४८॥ प्रवाह के काल ( समय ) की संख्या ( परिणाम ) इस तरह बतलाई गयी है । अब इसका कारण बतलावें-पृथ्वी पाँच गुणों की है, जल चार गुणों का है; अग्नि के तीन गुण, वायु के दो गुण और आकाश में केवल एक गुण ही है। [ देखिये-इसी ग्रन्थ का सांख्यदर्शन'तत्र शब्दस्पर्शरूपरसगन्धतन्मात्रेभ्यः पूर्वपूर्वसूक्ष्मभूतसहितेभ्यः पञ्च महाभूतानि वियदादीनि क्रमेणेकद्वित्रिचतुष्पंचगुणानि जायन्ते । (पृ० ५३६ )।]
प्रत्येक गुण में दस पल होते हैं-इसलिए पृथ्वी में पचास पल माने गये हैं। ॥५०॥ इसके बाद जलादि से एक-एक गुण की कमी होती जाती है । पृथ्वी के पांच गुणों में गन्ध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द हैं । इनमें भी क्रमशः [ एक-एक घटते जाते हैं-जल में गन्ध नहीं ( ४ गुण ), अग्नि में गन्ध और रस नहीं ( ३ गुण), वायु में गन्ध, रस और रूप नहीं ( २ गुण ) तथा आकाश में केवल शब्द गुण ही है ] ॥ ५१ ॥
५२. तत्त्वाभ्यां भूजलाभ्यां स्याच्छान्तिः कार्ये फलोन्नतिः ।
दीप्तास्थिराव्यूहवृत्तिस्तेजोवाय्वम्बरेषु च ॥ ५३. पृथ्व्यप्तेजोमरुद्व्योमतत्त्वानां चिह्नमुच्यते ।
आद्यस्थैर्य स्वचित्तस्य शेत्ये कामोद्भवो भवेत् ॥ ५४. तृतीये कोपसन्तापो चतुर्थे चञ्चलात्मता।.
पञ्चमे शून्यतैव स्यादथ वाधर्मवासना ॥ १. कुल मिलाकर १५० पल होते हैं अर्थात् ये पांचों तत्त्व १-१ घण्टे के क्रम से आते हैं ( २॥ घड़ी)।