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सर्वदर्शनसंग्रहेकहलाता है। उसी प्रकार योगशास्त्र भी संसार, संसार के कारण, मोक्ष और मोक्ष के उपाय को मिलाने से बनता है।
उनमें दुःखों से निर्मित संसार हेय है । प्रकृति (बुद्धि) और पुरुष का संयोग इस हेय ( संसार ) के भोग कारण है। [बुद्धि और पुरुष का संयोग होने से अविद्या संसार का निर्माण करती है। ] उससे सदा के लिए बच जाना मुक्ति है। उसका उपाय है सम्यक् दर्शन ( अर्थात् प्रकृति और पुरुष के भेद का ज्ञान )। इसी तरह दूसरे शास्त्रों को भी यथासम्भव चतुव्यूह सिद्ध कर सकते हैं-सब कुछ स्पष्ट ही तो है।
विशेष-योग के चतुयूह की तुलना बुद्ध के चार आर्यसत्यों से की जा सकती है। जिन प्रतियों में शांकरदर्शन नहीं मिलता उनमें यहाँ पर यह लिखा हुआ मिलता है-'इत: परं सर्वदर्शनशिरोमणिभूतं शांकरदर्शनमन्यत्र लिखितमित्यत्रोपेक्षितमिति' । वास्तव में यह लिपिकार को करनी है । इसका विवेचन भूमिका में किया गया है । इस प्रकार सायण-माधव के सर्वदर्शन-संग्रह में पातञ्जल-दर्शन समाप्त हुआ। इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शनसंग्रहस्य प्रकाशा
ख्यायां व्याख्यायां पातञ्जलदर्शनमवसितम् ॥
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