________________
६३२
सर्वदर्शनसंग्रहेसे युक्त पदार्थों को उत्पन्न करती है, दिया गया साधन ठोक उलटी चीज को ही सिद्धि कर देगा।] ___ स्वरूपासिद्धत्वाच्च । आन्तराः खल्वमी सुखदुःखमोहा बाह्येभ्यश्चन्दनादिभ्यो विभिन्नप्रत्ययवेदनीयेभ्यो व्यतिरिक्ता अध्यक्षमीक्ष्यन्ते । यद्यमी सुखादिस्वभावा भवेयुस्तदा हेमन्तेऽपि चन्दनः सुखः स्यात् । न हि चन्दनः कदाचिदचन्दनः। तथा निदाघेवत कुकुमपङ्कः सुखो भवेत् न ह्यसौ कदाचिदकुकुमपङ्क इति ।
इसके अतिरिक्त उक्त साधन स्वरूपासिद्ध भी है। ये सुख-दुःख और मोह आन्तरिक भाव ( अन्तरिन्द्रिय मन के द्वारा ज्ञेय ) हैं, जबकि चन्दनादि पदार्थ बाह्य भाव ( चक्षुः, श्रोत्र आदि बाहरो इन्द्रियों से ग्राह्य ) हैं, अतः ये ( चन्दनादि ) दूसरे प्रत्ययों ( साधनों) के रूप में ज्ञेय होते हैं तथा सुखादि उनसे अलग रहकर इन्द्रियों के ऊपर दिखलाई पड़ते हैं। [स्वरूपासिद्ध वह हेतु है, जो पक्ष में न रहे, जैसे-शब्द एक गुण है, क्योंकि यह चाक्षुष है। यहाँ चाक्षुषत्व-हेतु पक्ष ( शब्द ) में नहीं रहता है। उसी प्रकार चन्दनादि पदार्थों ( पक्ष ) में सुख, दुःख और मोह का अन्वय ( हेतु ) रखते हैं, जो असिद्ध है । सुखादि आन्तर भाव हैं, चन्दनादि बाह्य भाव । दोनों में एकता नहीं है अर्थात् एक ही ( अन्तर या बाह्य ) प्रत्यय से दोनों का बोध नहीं होता । सुख और विषय विभिन्न प्रत्ययों से ज्ञेय हैं, अतः दोनों का एक ही स्वभाव नहीं हो सकता। दोनों को एक मान लेने पर दोष भी होता है । ]
यदि चन्दनादि का स्वभाव ही सुखादि होता तो हेमन्तकाल में भी चन्दन सुख ही देता। ऐसा तो नहीं होता कि चन्दन कभी अ-चन्दन हो जाता है। [स्वभाव का अर्थ निरन्तर सम्बन्ध होना हो है। यदि सुख चन्दन का स्वभाव है तो कभी छूटना नहीं चाहिए। तब क्या कारण है कि शीतकाल में वह सुखद नहीं होता ? अवश्य ही चन्दन सुख-स्वभाव नहीं है। ] उसी प्रकार ग्रीष्मकाल में भी कुंकुम-लेप से सुख मिलता । ऐसी बात तो नहीं होती कि कभी-भी कुंकुम का लेप अपना स्वभाव (सुख ) छोड़कर अकूकुम-लेप हो जाता है। ___ एवं कण्टकः क्रमेलकस्येव मनुष्यादीनामपि प्राणभृतां सुखः स्यात् । न ह्यसौ काँश्चित्प्रत्येव कण्टक इति । तस्माच्चन्दनकुङकुमादयो विशेषाः कालविशेषाद्यपेक्षया सुखादिहे तवो न तु सुखादिस्वभावा इति रमणीयम् । तस्माद्धेतुरसिद्ध इति सिद्धम् ।
इसी प्रकार काटा जेसे ऊंट को सुख देता है, उसी प्रकार मनुष्यादि प्राणियों को भी सुख देने लगता। ऐसी बात नहीं है कि कुछ लोगों के लिए ही वह कांटा ( दुःखद ) है। इसलि) चन्दन, कुंकुम आदि पदार्थ (विशेष ) किसी विशेष काल आदि में ( उन पर