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सर्वदर्शनसंग्रहे
( क्रोध ) तथा अभिनिवेश ( देह आदि से कभी बियोग न हो, इस प्रकार की मनोभावना ) – ये क्लेश हैं' ( यो० सू० २१३ ) |
अब प्रश्न है कि 'अविद्या' शब्द में किस समास का अवलम्बन लेते हैं ? 'अमक्षिकं वर्तते' ( मक्खियों का अभाव हो गया ) इस समास की तरह क्या पूर्वपदार्थ की प्रधानता ( अव्ययीभाव समास ) मानते हैं ? [ 'अव्ययं विभक्ति ० पा० सू० २।१।६ ) से अभाव के अर्थ में 'मक्षिकाणामभावः' करने से 'अमक्षिकम् ' बनता है । उसी तरह 'विद्याया: अभावः = अविद्या' बनता होगा । अव्ययीभाव समास में पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है । ] अथवा 'राजपुरुषः ' की तरह उत्तर पदार्थ की प्रधानता ( तत्पुरुष समास ) मानते हैं ? [ नव् तत्पुरुष समास में इसका अर्थ होगा - किसी वस्तु के अभाव से विशिष्ट विद्या । राजपुरुष: : : = राजा के सम्बन्ध से युक्त पुरुष । उत्तर पदार्थ अर्थात् पुरुष प्रधान है । ] [ अथवा 'अमक्षिको देश : ' ( वह देश जहाँ मक्खियां नहीं हैं ) की तरह अन्य पदार्थ की प्रधानता ( बहुव्रीहि समास ) मानते हैं ? [ न मक्षिका यस्मिन् = अमक्षिको देशः । यहाँ अन्य - पदार्थ अर्थात् देश की प्रधानता है । उसी तरह 'अविद्यमाना विद्या यस्याः सा अविद्या बुद्धि:' यह अर्थ हो जायगा । ] तत्र न पूर्वः । पूर्वपदार्थप्रधानत्वेऽविद्यायां प्रसज्यप्रतिषेधोपपत्तौ क्लेशादिकारकत्वानुपपत्तेः । अविद्याशब्दस्य स्त्रीलिङ्गत्वाभावापत्तेश्च । न द्वितीयः । कस्यचिदभावेन विशिष्टाया विद्यायाः क्लेशादिपरिपन्थित्वेन तद्बीजत्वानुपपत्तेः ।
पहला विकल्प [ कि यह अव्ययीभाव समास है ] नहीं माना जा सकता । 'अविद्या' शब्द से पूर्वपदार्थ की प्रधानता मानने पर प्रसज्य - प्रतिषेध की सिद्धि होगी । [ प्राप्ति के साथ प्रतिषेध होना प्रसज्यप्रतिषेध है । जैसे- 'अब्राह्मणः' कहने से ब्राह्मण के अभाव की प्राप्ति होती है । 'अविद्या' में विद्या की प्रसक्ति होकर उसका अभाव प्रतीत होगा । विद्या सदृश किसी भावात्मक ( Positive ) पदार्थ की प्राप्ति होनी चाहिए। किन्तु ऐसी बात यहाँ नहीं । केवल अभाव ही तो प्रतीत होता है उत्पन्न नहीं कर सकता [ किन्तु अविद्या क्लेशादि उत्पन्न करती है । ] दूसरे, अव्ययीभाव समास में 'अविद्या' शब्द स्त्रीलिङ्ग नहीं रह सकता । [ 'अव्ययीभावश्च' ( पा० सू० २|४|१८ ) सूत्र के अनुसार अव्ययीभाव समास केवल क्लीबलिङ्ग ही होते हैं । ]
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विद्या का अभाव ]
क्लेश आदि को
[ तत्पुरुष समास - नव् माननेवाला ] दूसरा विकल्प भी ठीक नहीं है । यदि किसी के अभाव से विशिष्ट ( Characterised ) विद्या को अविद्या कहते हैं (= यदि राग, द्वेष. शोक, मोह आदि में से किसी एक के अभाव से युक्त ज्ञान ही अविद्या है ) तो ऐसी अविद्या क्लेशादि का विनाश हो करेगी, उनका बीज ( उत्पादक ) नहीं हो सकती । [ इस समास में अविद्या = विद्या । और विद्या क्लेशादि को नष्ट हो करेगी, उत्पन्न नहीं । ]