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पातञ्जल-वर्शनम्
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कि उनका भोक्ता पुरुष परिणामी नहीं है' ( यो० सू० ४।१८ ) । चित्त को परिणामी मानने के लिए तो अनुमान दिया जाता है
( १ ) चित्त परिणामी है । ( प्रतिज्ञा )
( २ ) क्योंकि इसके विषय - घटादि - ज्ञात भी हैं, अज्ञात भी । ( हेतु ) ( ३ ) जिस प्रकार श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ हैं । ( दृष्टान्त ) ।
( ८ क. परिणाम के तीन भेद )
परिणामश्च त्रिविधः प्रसिद्धो धर्मलक्षणावस्थाभेदात् । धर्मिणश्चित्तस्य नीलाद्यालोचनं धर्मपरिणामः । यथा कनकस्य कटकमुकुटकेयूरादि । धर्मस्य वर्तमानत्वादिलक्षणपरिणामः । नीलाद्यालोचनस्य स्फुटत्वादिरवस्थापरिणामः । कटकादेस्तु नवपुराणत्वादिरवस्थापरिणामः । एवमन्यत्रापि यथासम्भवं परिणामत्रितयमूहनीयम् । तथा च प्रमाणादिवृत्तीनां चित्तधर्मत्वात्तनिरोधोऽपि तदाश्रय एवेति न किञ्चिदनुपपन्नम् ।
परिणाम तीन प्रकार का प्रसिद्ध है - धर्मपरिणाम, लक्षणपरिणाम और अवस्थापरिणाम | जब धर्मी अर्थात् चित्त नीलादि का साक्षात्कार ( नील के आकार में चित्तवृत्ति का परिणाम ) करता है तब उसे धर्मपरिणाम कहते हैं जैसे कनक के [ धर्मपरिणाम ] कटक ( कंगन ), कुण्डल, केयूर आदि हैं । [ अवस्थितधर्मी में एक धर्म का तिरोभाव होने दूसरे धर्म का आगमन होना धर्म - परिणाम है । चित्त के धर्म इसकी अनेक वृत्तियाँ हैं जो विषयों के आकार में रहती हैं । नील का साक्षात्कार करने पर जो नीलाकार वृत्ति रहती है उसका तिरोधान होने पर दूसरे विषयों का साक्षात्कार करने पर वृत्ति का प्रादुर्भाव होता है । कनक में कंगन के धर्म का तिरोभाव हो धर्म का आगमन होता है। मिट्टी में पिण्ड का धर्म लुप्त होने पर घटधर्म आता है आदिआदि । योगशास्त्र भी सांख्य की तरह सत्कार्यवाद को मान्यता देता है इसलिए इन धर्मों का विनाश या उत्पत्ति नहीं मान सकते। सभी धर्म सदा वर्तमान रहते हैं । यही कारण है कि धर्मो का तिरोभाव और आविर्भाव कहते हैं - विनाश और उत्पत्ति नहीं । ]
उस दूसरे आकार की
जाने पर मुकुट के
धर्म का वर्तमान होना आदि लक्षणपरिणाम हैं । [ जैसे धर्मी स्वरूप से सदा विद्यमान रहने पर भी विभिन्न धर्मों से युक्त होता है उसी प्रकार प्रत्येक धर्म सदा विद्यमान रहने पर की भविष्यत, वर्तमान और भूत के रूप में विभिन्न लक्षणों से युक्त होता है । यही धर्म का लक्षणपरिणाम है। एक लक्षण छोड़कर धर्म दूसरे लक्षण से युक्त हो जाता है । धर्म के समान ही ये लक्षण भी तिरोभूत या आविर्भूत होते हैं अतः सत्कार्यवाद की रक्षा हो जाती है । ]
नीलादि का साक्षात्कार करने में स्फुट होना आदि अवस्थापरिणाम है, कंगन आदि में नया पुराना आदि होना ही अवस्थापरिणाम है । [ नील का साक्षात्कार वर्तमान के