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सर्वदर्शनसंग्रहे
विरोध होने के कारण सामान्य से रहित होता है । विशेष को समवेत मानने से इसका पार्थक्य समवाय- नामक पदार्थ से स्पष्ट होता है । समवाय में दूसरा समवाय नहीं होता जिससे वह समवेत भी नहीं हो सकता । ]
समवाय से रहित सम्बन्ध को समवाय ( Inherence ) कहते हैं, इस प्रकार छहों पदार्थों के लक्षण पृथक्-पृथक् कहे गये । [ जिस सम्बन्ध का समवाय नहीं हो वही समवाय है । इसके द्वारा संयोग सम्बन्ध से अवस्थित हो सकता है । वास्तव में समवाय वह है जब दो पदार्थों में नित्य सम्बन्ध हो, जैसे पृथिवी और गन्ध में समवाय है । अब इस समवाय में कोई दूसरा समवाय नहीं होगा । दूसरी ओर, दो वस्तुओं में संयोग ( थोड़ी देर के लिए ) सम्बन्ध हुआ है । संयोग और उन वस्तुओं के बीच समवाय हो सकता है । अब आगे नहीं बढ़ सकेंगे कि फिर समवाय का समवाय होगा । ]
( ६. द्रव्य के भेद ओर उनके लक्षण )
द्रव्यं नवविधं पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकांशकालदिगात्ममनांसि इति । तत्र पृथिव्यादिचतुष्टयस्य पृथिवीत्वादिजातिर्लक्षणम् ।
पृथिवीत्वं नाम पाकजरूपसमानाधिकरणद्रव्यत्वसाक्षाद्व्याप्यजातिः । अप्त्वं नाम सरित्सागरसमवेतत्वे सति ज्वलनासमवेतं सामान्यम् ।
द्रव्य नौ प्रकार का है— पृथिवी, अप् ( जल ), तेजस् ( अग्नि ), वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मन् और मनस् । उनमें पृथिवी आदि प्रथम चार द्रव्यों के लक्षण हैं पृथिaa आदि की जाति । [ पृथिवी का लक्षण पृथिवीत्व की जाति, अप् का लक्षण अप्त्वजाति, तेजस का लक्षण है तेजस्त्व-जाति, वायु का लक्षण वायुत्व-जाति । जिस प्रकार द्रव्य, गुण, कर्म के लक्षणों में उनके सामान्यों का उल्लेख होता है उसी प्रकार इन द्रव्यों के लक्षणों में भी इनके सामान्य के द्वारा ही इन्हें लक्षित ( Define ) किया जाता है । अब इनके सामान्यों के लक्षण दिये जाते | यह द्रविड़ - प्राणायाम न्याय-वैशेषिकों की विशेषता है | किसी बात को सीधे कहने में नाना प्रकार की आपत्तियाँ होती हैं, इसलिए तौल-तौल कर एक-एक शब्द पर ध्यान रखते हुए वे लक्षण देते हैं । इसके लिए चाहे जितना पर्यटन करना पड़े । ]
पृथिवी - सामान्य का लक्षण - जो पाक ( अग्नि - संयोग ) से उत्पन्न रूप के समानाधिकरण ( Identical ) हो तथा द्रव्य - सामान्य के द्वारा सीधे व्याप्त हो सके, उसी
१. जिन वस्तुओं में अवयव होते हैं उनके व्यक्तियों ( Individuals ) को अवयवों का अन्तर देखकर पहचाना जा सकता है । किन्तु ऐसे भी पदार्थ हैं जिनके अवयव नहीं हैं, जैसे - आकाश, काल, दिक्, परमाणु ( पृथिवी, जल आदि के ), जीव आदि । इनके व्यक्तियों को जानने के लिए ही विशेष को आवश्यकता पड़ती है । विशेष का विवेचन वैशेषिकों का अपूर्व प्रयास है जिससे दर्शन का नाम ही पड़ा है ।