________________
अमपार-वसनम्
४०७ ( प्रत्यक्ष ) से वह उष्ण सिद्ध हो जाता है । दूसरा उदाहरण-चीनी खट्टी है क्योंकि इससे अम्लता उत्पन्न होती है।' ___ अनुमान में हेत्वाभासों का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि वादी-प्रतिवादी के शास्त्रार्थ में हेतु या कारण की शुद्धि पर ध्यान देना परम आवश्यक है । सम्भव है कि ऊपर से देखने में हेतु शुद्ध लगता हो परन्तु वह हेत्वाभास हो । भारतीय तर्कशास्त्र में दोषों के प्रकरण में केवल हेतु का ही गला पकड़ा जाता है जब कि यूनानी तर्कशास्त्र में अन्य पदों ( पक्ष, साध्य ) की भी शुद्धता की परीक्षा होती है।
शब्दवृत्तिव्यत्ययेन प्रतिषेधहेतुश्छलम् । तत्त्रिविधम् । अभिधानतात्पर्योपचारवृत्तिव्यत्ययभेदात् ।
शब्द की विभिन्न वृत्तियों ( अर्थोल्पादक शक्तियों) को उलटकर जिसके द्वारा किसी की बात का विरोध किया जाय वह छल (Quibble ) है। [ न्यायसूत्र के अनुसार, किसी शब्द के वैकल्पिक अर्थों के आधार पर वक्ता की उक्ति का खण्डन करना छल है । वक्ता किसी विशेष अर्थ में किसी शब्द का प्रयोग करते हुए कोई बात कह रहा है । उसी समय छलवादी उस शब्द का दूसरा अर्थ लगाकर कहता है कि ऐसा कैसे होगा ? ] __ छल के तीन भेद हैं-अभिधानवृत्ति ( Convention शक्ति ) का व्यत्यय ( उलटना), तात्पर्यवृत्ति ( Purport ) का व्यत्यय तथा उपचारवृत्ति ( लक्षणा Indication ) का व्यत्यय । [ अभिधानवृत्ति के व्यत्यय से छल तब होता है जब किसी वाक्य में ऐसा शब्द दिया जाय जिसके कई वाच्यार्थ या मुख्यार्थ हों तथा उसके दूसरे अर्थ को दृष्टि में रखते हुए वाक्य का खण्डन करें। इसे ही न्यायसूत्र में वाक्छल ( Quibble of a Term ) कहा गया है । जैसे कोई कहे कि यह छात्र नव कम्बल से युक्त है । उनके कहने का अभिप्राय है 'नये कम्बल से' । अब चूंकि 'नव' का अर्थ नी संख्या भी है, इसलिए छलवादी वाक्य काटता है कि इसके पास नव कम्बल कहाँ से आये, इस दरिद्र को तो एक भी कम्बल दुर्लभ है । तात्पर्यवृत्ति के व्यत्यय से होनेवाले छल में एक ही शब्द के तात्पर्य के भेद से कई अर्थ होते हैं तथा एक तात्पर्यार्थ का दूसरे तात्पर्यार्थ से प्रतिषेध करते हैं । जैसेसामान्य अर्थ ( General sense ) में कोई कहता है कि ब्राह्मण में विद्या होती है, अव छलवादी उसका तात्पर्य यह समझकर कि सभी ब्राह्मणों में नियमत: विद्या होती है, इस उक्ति का निषेध करता है कि ब्राह्मण में विद्या केसे सम्भव है, मूर्ख ब्राह्मण भी तो होते हैं । इस प्रकार सामान्यार्थ को विशेषार्थ में लेकर छलवादी बात काटता है । इसे न्यायमत्र में सामान्यच्छल कहा गया है । उपचारवृत्ति के व्यत्यय से होनेवाले छल में किसी शब्द का
१. साध्याभाव का निश्चय चूंकि प्रत्यक्ष से ही हो जाता है इसलिए हेतुवाक्य की कोई आवश्यकता नहीं रहती, उसके उच्चारण के पूर्व ही कार्य हो जाता है । इस तरह हतु का काल ( कार्यकाल ) पहले ही बीत जाता है और इसे कालातीत कहते हैं ।