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पाणिनि-वर्शनम्
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अब यदि पूछा जाय कि शब्द तो अचेतन है, उसमें इतनी सामर्थ्य कहाँ से आ जायगी ? तो हम कहेंगे कि ऐसा मत समझिये क्योंकि महान् देव (ईश्वर) से इसकी समता सुनी जाती है = श्रुति में प्रतिपादित है ) । तो श्रुति कहती है- 'इसकी चार सोंगें और तीन पेर हैं, दो सिर हैं तथा इसके सात हाथ हैं; तीन तरह से बंधकर यह वृषभ ध्वनि उत्पन्न करता है, वह महान देव ( शब्द रूप में ) मनुष्यों में प्रवेश करता है' ( ऋ० सं० ४५८ ३ ) । [ यह ऋचा महानारायणोपनिषद् १०1१ में भी ज्यों-की-त्यों उद्धृत है ] '
व्याचकार च भाष्यकारः - चत्वारि शृङ्गाणि चत्वारि पदजातानि, नामाख्यातोपसर्गनिपाताः । त्रयो अस्य पादा लडादिविषयास्त्रयो भूतभविष्यद्वर्तमानकालाः । द्वे शीर्षे द्वौ शब्दात्मानौ नित्यः कार्यश्च । व्यङ्ग्यव्यञ्जकभेदात् । सप्त हस्तासो अस्य, तिङा सह सप्त सुविभक्तयः । त्रिधा बद्धः त्रिषु स्थानेषु उरसि कण्ठे शिरसि च बद्धः । वृषभ इति प्रसिद्धवृषभत्वेन रूपणं क्रियते । वर्षणात् । वर्षणं च ज्ञानपूर्वकानुष्ठानेन फलप्रदत्वम् । रोरवीति शब्दं करोति । रौतिः शब्दकर्मा ।
इह शब्दशब्देन प्रपश्व विवक्षितः । महो देवो मर्त्या आविवेश । महान् वेवः शब्दो मर्त्या मरणधर्माणो मनुष्यास्तानाविवेशेति । महता देवेन परेण ब्रह्मणा साम्यमुक्तं स्यात् ( महाभाष्यम्, पृ० ३ ) इति ।
• भाष्यकार ( पतंजलि ) ने इसकी व्याख्या भी की है। चार सींगों का अर्थ है चार पद-भेद अर्थात् नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात। इसके तीन पैर हैं-लट् आदि लकारों के विषय अर्थात भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल | दो सिर हैं = शब्द के दो स्वरूप हैं, नित्य और कार्य । इन दोनों में यही भेद है कि एक व्यंग्य है दूसरा व्यंजक । [ नित्य शब्द आन्तर रूप से विद्यमान है, यही व्यंग्य है, क्योंकि इसीकी अभिव्यक्ति होती है । दूसरी ओर सुनाई पड़नेवाली वैखरी के रूप का शब्द कार्य है, यह बाह्य है और व्यंजक भी, क्योंकि नित्य शब्द की अभिव्यक्ति इसी के द्वारा समझी जाती है । आगे इसे स्पष्ट करेंगे । ]
इसके सात हाथ हैं अर्थात् तिङन्त ( क्रिया ) के विभक्तियाँ इसमें हैं। तीन प्रकार से बंधा है = तीन में निबद्ध है । [ वर्ग के पश्चम वर्गों तथा यरलव के १. 'शेश्छन्दसि बहुलम् ' ( ६।१।७० ) से शृङ्गाणि के स्थान में शृङ्गा, 'प्रकृत्यान्त:पादमव्यपरे' ( ६।१।११५ ) से 'त्रयो अस्य' में प्रकृतिभाव, वही बात 'हस्तासो अस्य' में, 'आज्जसेरसुक् ( ७।१।५० ) से हस्तासः' 'दीर्घादटि समान - पादे' ( ८|३|९ ) तथा 'आतोट नित्यम्' ( ८1३1३ ) से महान को अनुनासिक महाँ । देखिये - वैदिकी प्रक्रिया के सम्बद्ध सूत्र और उनकी टीका ।
साथ लगनेवाली सुबन्त की सात स्थानों में- हृदय, कंठ और सिर साथ ह का स्थान हृदय में है । अ,