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सर्वदर्शनसंग्रहे
हैं। हमारे ज्ञान का विषय न बनानेवाले सूक्ष्म तन्मात्र आदि भी योगियों और ज्ञानियों के विषय बन जाते हैं । जो प्रत्येक विषय में प्रवृत्त होता हो उसे 'प्रतिविषय' कहते हैं अर्थात् विषय से सम्बन्ध इन्द्रिय ही प्रतिविषय है । इस ( इन्द्रिय ) पर आश्रित जो अध्यवसाय (बुद्धिव्यापार या ज्ञान ) है उसे ही दृष्ट कहते हैं । दूसरे शब्दों में, विषयों के साथ सम्बन्ध इन्द्रिय के द्वारा किये गये निश्चयात्मक ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं।
(२) अनुमान-प्रत्यक्ष के बाद अनुमान आता है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष पर आश्रित है । लिंग ( व्याप्य ) और लिङ्गी ( व्यापक ) के ज्ञान से उत्पन्न होनेवला प्रमाण अनुमान है। शंकित तथा निश्चित दोनों प्रकार की उपाधियों का निराकरण हो जाने पर वस्तु के स्वभाव से ही जिसका साहचर्य सम्बन्ध हो वह व्याप्य होता है । जिसके साथ वह सम्बन्ध हो उसे व्यापक कहते हैं। धूम व्याप्य है, अग्नि व्यापक । इस ज्ञान के बाद जो शान होगा, वही अनुमान कहलायगा । धूम (लिंग ) पर्वत ( पक्ष ) में उसके धर्म के रूप में विद्यमान है-यह पक्षधर्मता का ज्ञान है। तो व्याप्य और व्यापक का व्याप्तिज्ञान तथा लिंग ( व्याप्य ) के पक्षधर्मताज्ञान से उत्पन्न ज्ञान अनुमान-प्रमाण है । न्याय-दर्शन के अनुमान-भेदों को यहां भी स्वीकृत किया गया है जो तीन हैं-पूर्ववत्, शेषवत् और सामान्यतोदृष्ट । किन्तु वाचस्पति ने पहले अनुमान के दो भेद किये हैं-वीत ( अन्वयविधि से व्याप्ति के द्वारा प्रवृत ) और अवीत (व्यतिरेकव्याप्ति से प्रवृत्त) अवीत को शेषवत् कहते हैं । किसी वस्तु की जहाँ-जहाँ सम्भावना हो, उन सभी स्थानों में वस्तु का निषेध करके अंत में और कोई उपाय न देखकर बचे हुए स्थान में वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना शेषवत् है । वीत के दो भेद हैं-पूर्ववत् और सामान्यतोदृष्ट । जब किसी वस्तु का विशिष्ट रूप पहले प्रत्यक्ष कर लिया गया हो और उसके आधार पर उसके सामान्य रूप से युक्त विशेष का ज्ञान किया जाय तो उसे पूर्ववत् कहते हैं। रसोई-घर में विशिष्ट रूप में वह्नि देखकर:धूम के द्वारा वह्नित्व से अवच्छिन्न ( व्याप्त, युक्त ) विशेष रूप अर्थात् पर्वतीय वह्नि का ज्ञान करना पूर्ववत्' अनुमान है। इस प्रकार 'वह्नित्वसामान्य विशेष' का अनुमान हुआ । सामान्यतोदृष्ट अनुमान का विषय ऐसी सामान्य वस्तु है जिसका विशेष रूप पहले देखा नहीं गया हो । जैसे-इन्द्रिय-विषयक अनुमान । रूपादि का ज्ञान क्रिया है, इस ( लिंग ) से इन्द्रियों का अनुमान होता है, क्योंकि क्रिया किसी साधन ( करण = साधन, इन्द्रिय ) से ही उत्पन्न होती है । ( विशेष विवरण के लिए त० को० देखें)।
(३) आप्तवचन (शब्द)-अनुमान के बाद आप्तवचन या शब्द प्रमाण इसलिए रखते हैं कि अनुमान के द्वारा ही बालक को 'शक्ति' अर्थात् शब्दार्थ-सम्बन्ध का ज्ञान होता है और शब्दार्थ के सम्बन्ध का ज्ञान होने पर ही शाब्दबोध ( शब्द के अर्थ का साक्षात्कार ) होता है । अतः अनुमान शब्द-प्रमाण का परम्पराया ( परोक्ष रूप से ) कारण है।
१. देखिए-सर्वदर्शनसंग्रहः, पृ० १६ ( उपाधि ) तथा पृ० ११ ( उपाधि-भेद)।