________________
सर्वदर्शनसंग्रहे
इसी तरह घट आदि दूसरे पदार्थ भी मिल जाने पर सुख देते हैं, दूसरों के द्वारा चुरा लिये जाने पर दुःख देते हैं, किन्तु तटस्थ व्यक्ति के लिए उपेक्षा का विषय बन जाते हैं । उपेक्षा का विषय बन जाना ही मोह है । मुह-धातु का अर्थ होता है चित्त से रहित होना ( = चित्त को वृत्तियों का शून्यवत् हो जाना ) । इस धातु से ही 'मोह' शब्द बनता है । उपेक्षणीय वस्तुओं के प्रति चित्त की वृत्ति उगती ही नहीं । इसलिए सभी पदार्थ सुख दुःख तथा मोह के बने हुए हैं। वे तीन गुणों से बने हुए प्रधान ( प्रकृति ) रूपी कारण से हैं - यह मालूम होता है ।
५४८
तथा च श्वेताश्वतरोपनिषदि श्रूयते - ९. अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः । अजो ह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्यः ॥
( श्वे० ४१५ ) इति ।
अत्र
लोहितशुक्लकृष्ण शब्दाः रञ्जकत्व प्रकाशकत्वाव रकत्व साधर्यात् रजः सत्वतमोगुणत्रयप्रतिपादनपराः ।
श्वेताश्वतर उपनिषद् की श्रुति भी यही कहती है -- ( सरूपाः ) समान रूपवाली ( बह्वीः ) बहुत सी ( प्रजाः ) सन्तानों को ( सृजमानाम् ) उत्पन्न करने वाली ( एकाम् ) एक ( लोहितशुक्लकृणाम् ) लाल, उजली और काली ( अजाम् ) मूलप्रकृति की ( जुषमाण: ) सेवा करते हुए ( एक: ) एक दूसरा ( अज: ) अजन्मा पुरुष ( अनुशेते ) पीछेपीछे चलता है | ( अन्य : ) वह दूसरा ( अज: ) अजन्मा पुरुष ( एनाम् ) इसका ( भुक्तभोगाम् ) भोग कर लेने पर ( जहाति ) छोड़ देता है ।' ( श्वेताश्वतर उपनिषद् ४।५ ) ।
यहाँ लोहित, शुक्ल तथा कृष्ण शब्द क्रमशः रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण - इन तीन गुणों का प्रतिपादन करते हैं, क्योंकि इन शब्दों से क्रमशः रंगनेवाले, प्रकाशित करनेवाले तथा ढँक देनेवाले धर्मों की समानता है ।
विशेष - श्वेताश्वतर उपनिषद् की उक्त श्रुति को सांख्य में बड़ा महत्त्व देते हैं, क्योंकि यहीं सांख्य दर्शन के बीज प्राप्त होते हैं । बकरा-बकरी का रूपक देकर अध्यात्म विद्या का उपदेश देनेवाले श्लोक में सांख्य दर्शन अपने तत्त्वों से विद्यमान है । मूल प्रकृति और पुरुष कमशः अजा और अज हैं, क्योंकि दोनों अजन्मा हैं। तीन गुणों को ही प्रकृति कहते हैं । इन गुणों को आलंकारिक भाषा में लोहित, शुक्ल और कृष्ण कहा है। लाल रंग साड़ी आदि को रंग देता है, पदार्थों में रहनेवाला रजोगुण भी प्रेक्षकों को रंग देता है । इस प्रकार रंग और रजोगुण से रञ्जकत्व धर्म साधारण ( Common ) है, इसलिए लोहित से रजोगुण का बोध होता है । उजले पदार्थ जैसे सूर्य आदि प्रकाशक होते हैं, उधर सत्त्वगुण भी