________________
सांख्य-दर्शनम्
५४३ पहले से है पर अभिव्यक्ति के लिए पेरने के व्यापार की या दोहनव्यापार की अपेक्षा है । केवल अभिव्यंजक होने के कारण भी ये व्यापार कारण हुए। ] असत् वस्तु ( जैसे न्यायदृष्टि से कारणावस्था में घट ) की उत्पत्ति ( दण्डादि ) सिद्ध करनेवाला कोई दृष्टान्त भी नहीं मिलता। [ दृष्टान्त वैसा ही हो सकता है जो दोनों वादियों को स्वीकार हो । नेयायिक यदि घट का उदाहरण दें कि असत् घट का कारण दण्डादि है तो यह सम्भव नहीं। उधर सांख्यवाले घट को पहले से कारण-रूप में भी वर्तमान ही स्वीकार करते हैं आज तक कभी किसी ने असत् को उत्पन्न होते या अभिव्यक्त होते भी नहीं देखा कि दृष्टान्त दे सकें।]
इसके अतिरिक्त कारण-वस्तु कार्य-वस्तु को उससे या तो सम्बद्ध होकर उत्पन्न करती है या फिर असम्बद्ध ही होकर ( तीसरा विकल्प सम्भव नहीं)। सम्बद्ध होकर उत्पन्न करने से तो कार्य की सत्ता ( कारण में कार्य का रहना ) ही सिद्ध हो जाती है क्योंकि दो सत् वस्तुओं का ही सम्बन्ध होने का नियम है। यदि असम्बद्ध होकर उत्पन्न करती है तो कोई भी कार्य किसी भी कारण से उत्पन्न होने लगे क्योंकि असम्बद्ध तो सबों में बराबर ही रहेगी। [ घट से मिट्टी को यदि असम्बन्ध है तो पट से भी तो उसे असम्बन्ध ही है। तो, मिट्टी घट और पट दोनों को उत्पन्न कर सकेगी। अतः असम्बद्धता होकर कारण कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकता । असम्बद्ध असम्बद्ध से नहीं उत्पन्न होता, सम्बद्ध पदार्थ ही सम्बद्ध को उत्पन्न कर सकता है-तिल से ही तेल होगा, पाषाण से नहीं।] तदाख्यायि सांख्याचार्य:
७. असत्त्वान्नास्ति सम्बन्धः कारणः सत्त्वसङ्गिभिः।
असम्बद्धस्य चोत्पत्तिमिच्छतो न व्यवस्थितिः ॥ इति । इसे सांख्य के आचार्यों ने कहा है-[ उत्पत्ति के पूर्व कार्य को ] असत् मानने पर' सत्त्व के संग में रहनेवाले [ सत्त्व धर्म से युक्त ] कारणों ( मिट्टो आदि ) से इसका सम्बन्ध नहीं हो सकता। [मिट्टी से घड़ा बनता है; मिट्टी कारण है, घड़ा कार्य । यहाँ कारण वस्तु विद्यमान ( सत् ) है, किन्तु कार्य वस्तु अविद्यमान ( असत ) है क्योंकि उत्पत्ति के पूर्व कार्य रहता हो नहीं, यह न्यायमत है । अतः सत् ( कारण ) और असत् ( कार्य ) का सम्बन्ध होना कभी सम्भव नहीं । ] अब यदि ( कारण से ) असम्बद्ध (कार्य ) की उत्पत्ति मानी जाय तो [ 'अमुक कारण से अमुक कार्य उत्पन्न होता है'--इस तरह की ] व्यवस्था नहीं रहेगी। [मिट्टी से कपड़ा, जल से घड़ा, ईख से नमक आदि पैदा होने लगेंगे। किसी कारण से कोई भी कार्य उत्पन्न होने लगेगा।]
१. तत्त्वकौमुदी में पाठ 'असत्त्वे नास्ति' है । अर्थ में कोई भेद नहीं पड़ता । 'असत्त्वे' से साध्यता प्रकट होती है 'असत्त्वात्' से सिद्धता ।