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सर्वदर्शनसंग्रहे
पुरुष के संयोग से गुणों में वैषम्य आता है । इस दशा में प्रत्येक गुण पहचानने योग्य हो जाता है । यह एक प्रकार का परिणाम है जिसमें लघुत्व, प्रकाश आदि फल लगते हैं । प्रकृति की अपेक्षा वैषम्यावस्था के तीनों गुण पृथक् हो जाते हैं । कुछ सांख्यों ने तो इनकी भी गणना करके अपने तत्त्वों की संख्या अट्ठाईस पहुँचा दी है । सत्त्व आदि गुणों अपने स्वभाव भी हैं जो इस प्रकार हैं
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सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपष्टम्भकं चलं च रजः । गुरु वरणकमेव तमः प्रदीपवच्चार्थतो वृत्तिः ॥
( सां० का ० १३ )
सत्त्वगुण हल्का और इसीलिए प्रकाश माना जाता है, रजोगुण चञ्चल तथा इसीलिए उत्तेजक ( उपष्टम्भक ) है, तमोगुण भारी अतएव अवरोधक ( नियामक ) है – एक ही प्रयोजन की सिद्धि के लिए ये तीनों मिलकर काम करते हैं, जैसे दीपक में अग्नि बत्ती और तेल का विरोधी है फिर भी तीनों मिलकर वस्तुओं के प्रकाशन का कार्य करते हैं ।
सत्त्व हल्का होने के कारण अपने कार्य - इन्द्रियों में विषय-ग्रहण की पटुता उत्पन्न करता है । इसके प्रकाशक होने के कारण इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों का प्रकाशन कर लेती हैं । रजस् स्वभावतः चञ्चल है । सत्त्व और तमस् स्वभावतः निष्क्रिय हैं अतः अपने आप प्रवृत्त नहीं होते । प्रवृत्ति प्रदान करने का धर्म ही 'उपष्टम्भक' है । तमस् गुरु है जिससे इसके प्रकर्ष के कारण सत्त्व और रजस् बँध जाते हैं, आगे चल नहीं पाते । यही उसका आवरक या अवरोध धर्म है |
सत्त्व के धर्मों में सुख, प्रसाद, प्रकाश आदि हैं । रजस् के धर्म दुःख, कालुष्य, प्रवृत्ति आदि हैं । तमस् के धर्म मोह, आवरण स्तम्भन आदि हैं । धर्म और धर्मो में अभेद मानकर सत्त्व को सुखात्मक, रजस् को दुःखात्मक तथा तमस् को मोहात्मक भी कहते हैं । विशेष ज्ञान के लिए तत्त्वकौमुदी ( वाचस्पति मिश्र ) या प्रवचनसूत्र भाष्य ( विज्ञानभिक्षु ) के गत स्थल देखें |
( ३. प्रकृति और विकृति से युक्त तत्त्व )
विकृतयश्च प्रकृतयश्च महदहंकारतन्मात्राणि । तदप्युक्तं 'महदाद्याः प्रकृतिविकृतयः सप्त' (सा० का० ३ ) इति । अस्यार्थः - प्रकृतयश्च ता विकृतयश्चेति प्रकृति विकृतयः सप्त महदादीनि तत्त्वानि । तत्रान्तःकरणादिपदवेदनीयं महत्तत्त्व महकारस्य प्रकृतिः । मूलप्रकृतेस्तु विकृतिः ।
गुण ही महत् आदि के कारण हैं । यदि प्रकृति के स्वरूपवाले गुणों का अर्थ होता तो प्रकृति से उत्पन्न होना सम्भव ही नहीं था - ये गुण नित्य हैं । इस प्रकार गुण शब्द के विभिन्न अर्थ प्रयुक्त होते रहे हैं ।