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पाणिनि-दर्शनम्
सींग से युक्त [ पशुविशेष ] का बोध होता है, वही शब्द है" ( पतञ्जलि, महाभाष्य, पृ० १) । [ यहाँ स्पष्ट है कि पतञ्जलि अर्थ का बोध करानेवाले साधन-विशेष को शब्द कहते हैं जो और कुछ नहीं, नित्य शब्द या स्फोट ही है । कैयट ने ऐसी व्याख्या भी की है । ]
विवृतं च कैयटेन- ' वैयाकरणा वर्णव्यतिरिक्तस्य पदस्य वाचकत्वमिच्छन्ति । वर्णानां वाचकत्वे द्वितीयादिवर्णोच्चारणानर्थक्यप्रसङ्गादित्यादिना तद्व्यतिरिक्तः स्फोटो नादाभिव्यङ्ग्यो वाचको विस्तरेण वाक्यपदीये व्यवस्थापितः' इत्यन्तेन प्रबन्धेन ।
कैयट ने इसका विवरण भी दिया है - ' वैयाकरण लोग वर्ण के अतिरिक्त (वर्णों से पृथक् रखकर ) पद की वाचकता मानते हैं । वर्णों को दाचक मानने पर [ पहला वर्ण तो अर्थबोध करा ही देगा इसलिए ] द्वितीय और अन्य वर्णों का उच्चारण करना व्यर्थ ही हो जायगा । उनके अतिरिक्त ( पृथक् ) नाद या ध्वनि से अभिव्यंग्य 'स्फोट' है जो [ पदार्थ का ] वाचक है, वाक्यपदीय में उसकी व्यवस्था विस्तारपूर्वक की गई है ।' ( देखिए, महाभाग्य, चौखम्बा सं० पृ० ११ ) ।
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( ७ क. स्फोट पर अन्य शंका - मीमांसक )
ननु स्फोटस्याप्यर्थप्रत्यायकत्वं न घटते । विकल्पासहत्वात् । किमभिव्यक्तः स्फोटोऽथं प्रत्याययत्यनभिव्यक्तो वा ? न चरमः । सर्वदार्थप्रत्ययलक्षणकार्योत्पादप्रसङ्गात् । स्फोटस्य नित्यत्वाभ्युपगमेन निरपेक्षस्य हेतोः सदा सत्वेन कार्यस्य विलम्बायोगात् ।
[ पूर्वपक्षी कहते हैं कि ] स्फोट में भी अर्थ की प्रतीति कराने की शक्ति नहीं मानी जा सकती, क्योंकि दोनों ही विकल्प इस विषय में असिद्ध हो जाते हैं । क्या स्फोट अभिव्यक्त होकर अर्थ कराता है या बिना अभिव्यक्त ही हुए ? दूसरा पक्ष ठीक नहीं हो सकता । [ दूसरे पक्ष का खण्डन सरल है अतः पहले उसे ही लेते हैं, जैसे सूई और कड़ाही बनाने के लिए लुहार पहले सूई ही बना लेता है तब कड़ाही बनाता है । ] कारण यह है कि ऐसा मानने पर अर्थबोध रूपी कार्य का उत्पादन सदा ही होता रहेगा क्योकि स्फोट को नित्य मानते हैं. [ अर्थबोध का ] वही कारण है जो अभिव्यक्ति की अपेक्षा नहीं रखता - उसकी सत्ता सदा ही रहेगी, इसलिए [ अर्थबोध - रूपी ] कार्य के उत्पादन में विलम्ब की संभावना ही नहीं । [ अभिप्राय यह है कि अर्थप्रतीति को कार्य और स्फोट को कारण मानते हैं । कार्य-कारण का सम्बन्ध सदा रहता है। चूँकि अनभिव्यक्त रूप में ही स्फोट अर्थबोध करायेगा, अतः अभिव्यक्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता । अतः नित्य स्फोट नित्य रूप से बराबर अर्थबोध ही कराता रहेगा, विराम उसे कहाँ ?
अर्थतद्दोषपरिजिहीर्षयाऽभिव्यक्तः स्फोटोऽर्थं प्रत्याययतीति कक्षीक्रियते, तथाऽप्यभिव्यञ्जयन्तो वर्णाः किं प्रत्येकमभिव्यञ्जयति सम्भूय वा ? पक्ष