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पाणिनि-दर्शनम्
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( ७. स्फोट-नैयायिकों की शंका और उसका समाधान ) ननु भवता स्फोटात्मा नित्यः शब्द इति निजागद्यते। तन्न मृष्यामहे । तत्र प्रमाणाभावादिति केचित् । अत्रोच्यते । प्रत्यक्षमेवात्र प्रमाणम् । गौरित्येकं पदमिति नानावर्णातिरिक्तैकपदावगतेः सर्वजनीनत्वात् । न ह्यसति बाधके पदानुभवः शक्यो मिथ्येति वक्तुम् । पदार्थप्रतीत्यन्यथानुपपत्यापि स्फोटोऽभ्युपगन्तव्यः।
आप लोग बार-बार 'स्फोट के रूप में नित्य शब्द है' ऐसा कहते हैं । हम इसे ठीक नहीं मानते क्योंकि इसके लिए कोई प्रमाण नहीं--यह कुछ लोगों ( नैयायिकादि ) का कहना है । [नैयायिक लोग कहते हैं कि 'घटमानय' इस तरह के वाक्यों के उच्चारण के समय जो घ अ, ट् आदि वर्ण कण्ठादि स्थानों में वायु के संयोग से उत्पन्न होते हैं, कानों से सुनाई पड़ते हैं और तुरत नष्ट हो जाते हैं वे ही शब्द हैं, उनके अलावे किसी दूसरी चीज को शब्द नहीं कहते । घट-वस्तु के बोधक भी ये ही हैं । अतः नैयायिक लोग शब्द को अनित्य मानते हैं । वैयाकरणों का कहना है कि यह शब्द नहीं है, किन्तु शब्द को व्यंजित करनेवाली ध्वनि है । इस ध्वनि के द्वारा जो व्यंग्य होता है वही शब्द है, जो घटादि वस्तु का बोधक होता है । यह शब्द नित्य है-न उत्पन्न होता है न नष्ट । वाणी की सर्वोत्तम, अन्तरतम अवस्था-परा वाणी में यह रहता है, इसे ही स्फोट कहते हैं। बाह्य ध्वनि या कार्य शब्द केवल इसका व्यंजित तथा अनर्थक है । इस प्रकार वैयाकरणों के अनुसार "घटमानय' इत्यादि ध्वनि का उच्चारण करने से वाचक नित्य शब्द की अभिव्यक्ति होती है जिससे अर्थबोध होता है ।
[विरोधियों की ] इस उक्ति पर हमारा यह कहना है कि इसे सिद्ध करने के लिए तो प्रत्यक्ष प्रमाण ही है । 'गो' यह एक ही पद है, इसमें अनेक वर्णों [ के होते हुए भी उन ] के अतिरिक्त एक पद का ही बोध सभी लोग करते हैं। [ 'गो' में एकत्व का बोध सभी लोग करते हैं । पर यह एकत्व है कहाँ ? वर्गों में तो नहीं है, क्योंकि वे अनेक हैं। इस एकत्व का आधार कुछ तो अवश्य मानना है । जो वर्णसमूह के द्वारा व्यक्त हो वही स्फोट है । पद की एकता का अनुभव सबों को होता है । ] जब तक कोई बाधक प्रमाण नहीं मिलता तब तक पदों की एकता के इस अनुभव को हम मिथ्या नहीं कह सकते।
पदार्थ की प्रतीति ( बोध ) किसी भी दूसरे साधन से सिद्ध नहीं हो सकती (= एकमात्र उपाय स्फोट-सिद्धान्त ही है ), इसलिए भी स्फोट को मान लेना चाहिए।
न च वणेभ्य एव तत्प्रत्ययः प्रादुर्भवतीति परीक्षाक्षमम् विकल्पासहत्वात् । किं वर्णाः समस्ता व्यस्ता वार्थप्रत्ययं जनयन्ति ? नाद्यः। वर्णानां क्षणिकानां समूहासम्भवात् । नान्त्यः । व्यस्तवर्णेभ्योऽर्थप्रत्ययासम्भवात् । न च व्याससमासाभ्यामन्यः प्रकारः समस्तीति । तस्माद्वर्णानां वाचकत्वानप