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सर्वदर्शनसंग्रहे
[ अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति के द्वारा देवदत्त का घर पूछने पर दूसरा कहता है कि कौए वाला घर देवदत्त का है। यद्यपि को घर पर अस्थिर ही है, परन्तु उस निमित्त ( कारण, संकेत ) से देवदत्त के घर का पता लग जाता है। किन्तु गृह शब्द से काकरहित गृह का ही बोध होता है -जो लक्ष्य है। उसी तरह गो, घट आदि शब्दों से व्यक्ति ( गोव्यक्ति, घटव्यक्ति ) जो आगे रखकर उसी के माध्यम से इन व्यक्तियों (निमित्तों) से रहित 'सत्ता' पर पहुँचते हैं जो सत्य तत्त्व है। किसी भी दशा में शब्द सत्ता के ही बोधक हैं।] ___'सिद्धे शब्दार्थसम्बन्धे' (शब्द, अर्थ तथा उनका सम्बन्ध सिद्ध हैं )-इस वात्तिक ( सं० १ ) के व्याख्यान के समय भाष्यकार ने 'द्रव्य चूंकि नित्य है' यह कहते हुए निरूपित किया है कि असत्य उपाधियों से व्याप्त ब्रह्मतत्त्व, जो द्रव्य शब्द के द्वारा अभिहित होता है, सभी शब्दों का अर्थ है। [जब आशंका की जाती है कि क्या पाणिनि ने शब्द, अर्थ और उनके सम्बन्ध की सृष्टि की है या केवल स्मरण किया है तब उत्तर में उक्त वात्तिक रखा जाता है। सिद्ध = नित्य । शब्द, अर्थ और उनका सम्बन्ध नित्य है उनके ज्ञापन के लिए ही पाणिनि प्रवृत्त हुए हैं। अर्थ के विषय में पक्ष हो सकते हैं-जाति अर्थ है या व्यक्ति ? दोनों पक्षों में अर्थ नित्य ही रहता है। जाति को पदार्थ मानने पर तो जाति सत्ता है, इसलिए वह नित्य है हो । सत्ता के अतिरिक्त जाति को अलग माननेवाले (नेयायिकादि ) भी जाति को नित्य हो मानते हैं । यदि द्रव्य को पदार्थ मानें तो पतञ्जलि ने भाष्य (पृ० ७) में कहा है-'द्रव्यं हि नित्यम्' । अब यदि द्रव्य से गो, घट आदि पार्थिव द्रव्य का अर्थ लेंगे तब तो ये अनित्य हैं, अतः पतञ्जलि की बात झूठी हो जायगी। इसलिए केयट ने कहा है कि असत्य उपाधि से अवच्छिन्न ब्रह्मतत्त्व ही यहां 'द्रव्य' शब्द से समझना चाहिए । जाति, व्यक्ति दोनों ही पक्षों में परमार्थ-संवित् से लक्षित ब्रह्म की सत्ता ही सभी शब्दों का अर्थ है । उक्त वात्तिक से मालूम होता है कि अर्थ से युक्त शब्द भी नित्य ही है। अतः स्फोट के रूप में जो शब्द है वही वाचक है, वर्णों के रूप में रहने वाली अनित्य ध्वनि नहीं । जैसा कि पहले कह चुके हैं ध्वनि केवल व्यंजक है जो स्फोट को अभिव्यक्ति करती है--वाचकता तो स्फोट शब्द में ही है। अतः स्फोट सिद्ध हो गया।]
( ११. जाति और व्यक्ति को पदार्थ माननेवालों के विचार ) जातिशब्दार्थवाचिनो वाजप्यायनस्य मते गवादयः शब्दा भिन्नद्रव्यसमवेतजातिमभिदधति । तस्यामवगामानायां तत्सम्बन्धाद् द्रव्यमवगम्यते । शुक्लादयः शब्दा गुणसमवेतां जातिमाचक्षते । गुणे तत्सम्बन्धात्प्रत्ययः । द्रव्ये सम्बन्धिसम्बन्धात् ।