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सर्वदर्शनसंग्रहे
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बड़े लोगों का भी कहना है कि शब्दब्रह्म में प्रवीण होकर पुरुष परब्रह्म ( मोक्ष, ब्रह्मसायुज्य ) की प्राप्ति करता है । ( महाभारत, शान्तिपर्व अध्याय २७० । इस तरह शब्दानुशासन ( व्याकरण ) शास्त्र मोक्ष का साधन है, यह सिद्ध होता है । वही कहा भी है'वह ( व्याकरण - शास्त्र ) अपवर्ग का साधन है, [ पाप को उत्पन्न करनेवाले अपशब्दरूपी ] वाणी के मलों की चिकित्सा करनेवाला है, सभी विद्याओं में पवित्र है तथा सभी विद्याओं में इसकी पूछ है' ( वाक्य ० १ १४ ) । [ चूँकि सभी शास्त्रों में अर्थ शब्दों से ही लिया जाता है और शब्द का संस्कार व्याकरण के अधीन है अतः सबों को प्रकाशित करनेवाला व्याकरण ही है । ] उसी तरह — 'यह ( व्याकरण ) सिद्धि के सोपान खण्डों में पहला सोपान है— मोक्ष प्राप्त करनेवालों के लिए तो यह सीधी सड़क ही है ।' ( वही, १।१६ ) | अतः परम पुरुषार्थ (मोक्ष) के उपाय के रूप में व्याकरणशास्त्र का अध्ययन करना चाहिये- -यह सिद्ध हुआ ।
इस प्रकार सायण - माधव के सर्वदर्शनसंग्रह में पाणिनि-दर्शन समाप्त हुआ । इति बालकविनोमाशङ्करेण रचितायां सर्वदर्शनसंग्रहस्य प्रकाशाख्यायां व्याख्यायां पाणिनिदर्शनमवसितम् ॥
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