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अक्षपाद-दर्शनम्
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होनेवाले प्राणियों के द्वारा किये गये विभिन्न पुण्यों और पापों के परिणामस्वरूप विषमता तो रहेगी हो ।
इच्छा
कुछ
उक्त आधार पर यह शंका नहीं करनी चाहिए कि [ प्राणियों के द्वारा किये गये कर्म पर निर्भर करने के कारण ] ईश्वर स्वतन्त्र नहीं है । [ जब संसार की सृष्टि करने में अपनी भी काम नहीं कर सकता, प्राणियों के कर्म के अनुसार उन्हें सुख-दुःख देता तो ईश्वर स्वतन्त्र कैसे हुआ ? प्राणिकर्म के अधीन ही वह रहता है । किन्तु वैसी बात नहीं ।] ' अपना ही अंग अपने ही कार्य का विरोध नहीं करता' - इसी नियम से तो और अच्छी तरह से उसका निर्वाह हो जायगा । [ संसार और इसके सारे पदार्थ, कर्म आदि सब कुछ ईश्वर का शरीर है । प्राणियों के द्वारा किये गये कर्म उसके अंग ही हैं । यदि ईश्वर सृष्टि के कार्य में इन कर्मों अर्थात् अपने अंगों की अपेक्षा रखे तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह पराधीन है । अपने ही हाथ-पैर से काम लेने से कोई पराधीन नहीं कहलाता, भले ही दूसरों से काम लेने पर पराधीनता आती । अपने अंगों से काम लेने से बल्कि बड़ाई ही होती है । वैसे ही ईश्वर के द्वारा आरम्भ किये गये कार्य का साधन भी स्वतन्त्र है, इस में स्वतन्त्रता का ही गौरव बढ़ता है । ]
[ ईश्वर की सत्ता की सिद्धि के लिए ] आगम का भी प्रमाण है -- रुद्र एक ही है, दूसरा कोई हुआ ही नहीं' ( तैत्तिरीय संहिता ११८ | ६ तथा श्वेता ० ३।२ ) ।
यद्येवं तर्हि परस्पराश्रयबाधन्याधि समाधत्स्वेति चेत् — तस्यानुत्थानात् । किमुत्पत्तौ परस्पराश्रयः शक्यते ज्ञप्तौ वा । नाद्यः । आगमस्येश्वराधीनोत्पत्तिकत्वेऽपि परमेश्वरस्य नित्यत्वेनोत्पेत्तेरनुपपत्तेः । नापि ज्ञप्तौ । परमेश्वरस्यागमाधीनज्ञप्तिकत्वेऽपि तस्यान्यतोऽवगमात् । नापि तदनित्यत्वज्ञप्तौ । आगमानित्यत्वस्य तीव्रादिधर्मोपेतत्वादिना सुगमत्त्वात् । यस्मान्निवर्तकधमनुष्ठानवशादीश्वरप्रसादसिद्धावभिमतेष्टसिद्धिरिति सर्वमवदातम् ॥
इति श्रीमत्सायण माधवीये सर्वदर्शनसंग्रहेऽक्षपाददर्शनम् ॥
यदि ऐसी बात है तो अन्योन्याश्रय-दोषरूपी रोग का तो निराकरण कीजिए । [ ईश्वर ] की सिद्धि आगम से करने पर तथा आगम को ईश्वर - शरीर मानने पर, ईश्वर और आगम में तो अन्योन्याश्रय-दोष होगा । इसका निराकरण करना कठिन है । आप करें तो जानें। पूर्वपक्षियों की शंका पर नेयायिक कहते हैं कि ] यह दोष उठता ही नहीं । इस परस्पराश्रयदोष की शंका उत्पत्ति के विषय में मानते हैं या ज्ञान के विषय में ? पहला विकल्प नहीं माना जा सकता, क्योंकि यद्यपि आगम ईश्वर के अधीन उत्पन्न हुआ है तथापि परमेश्वर