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जैमिनि-पर्शनम्
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हित होती है । भावना के दो भेद हैं—आर्थी और शाब्दी । शब्द की ओर से ( जैसे तव्य-प्रत्यय की ओर से ) जो प्रेरणात्मक व्यापार उत्पन्न हो उसे शाब्दी भावना कहते हैं । प्रस्तुत स्थल में यह तव्य-प्रत्यय के द्वारा अभिहित होती है। 'स्वाध्यायोऽध्येतव्यः' में तव्य प्रत्ययात्मक शब्द सुनने के अनन्तर यह प्रतीति होती है कि यह शब्द मुझे अध्ययन-कर्म में प्रेरित कर रहा है । जिस शब्द से जिस अर्थ की प्रतीति नियमपूर्वक होती है वह अर्थ उस शब्द का वाच्य है। ऐसे भ्रम में न पड़ें कि संसार की अन्य प्रेरणाओं की तरह यह प्रेरणा भी पुरुष पर निर्भर करती है। वेद अनादि है, उसके कर्ता कोई पुरुष नहीं हैं । अतः अभिधा-भावना ( या शाब्दी भावना) का आधार तव्य प्रत्यय ही है । वही तव्य प्रत्यय शाब्दी भावना का वाचक है।
अभिधा-भावना के द्वारा अध्ययन की ओर पुरुषों की प्रवृत्ति सिद्धि होती है। यह प्रवृत्ति ही आर्थो भावना कहलाती है, क्योंकि प्रवृत्ति पुरुष आदि अर्थों ( विषयों ) पर निर्भर करती है। आर्थी भावना का वाचक तव्य प्रत्यय ही है, क्योंकि अध्ययन मात्र का बोध धातु से ही होता है। यह आर्थी शावना अपने भाव्य की आकांक्षा करती है कि इसके द्वारा कौन-सी भावना करें (किं भावयेत् ) ? उसका साध्य अध्ययन है किन्तु वह आर्थी भावना के द्वारा भावित नहीं हो सकता । इसे ही सष्ट करते हैं । ]
न तावत्समानपदोपात्तमध्ययनं भाव्यत्वेन परिरमते । अध्ययनशब्दार्थस्य स्वाधीनोच्चारणक्षमत्वस्य वाङ्मनसव्यापारस्य फ्लेशार्थकस्य भाव्यत्वासम्भवात् । नापि समानवाक्योपात्तः स्वाध्यायः। स्वाध्यायशब्दार्थस्य वर्णराशेनित्यत्वेन विभुत्वेन चोत्पत्त्यादीनां चतुर्णा क्रियाफलानामसम्भवात् ।
चूंकि अध्ययन का उपादान उस एक ही पद ( अध्येतव्यः ) में हुआ है [ जिसमें आर्थी भावना के तव्य प्रत्यय का भी स्थान है ] अतः इस आधार पर यह नहीं हो सकता कि आर्थी भावना का भाव्य ( साध्य ) अध्ययन ही है। कारण यह है कि 'अध्ययन' शब्द का अर्थ है प्रत्येक वर्ण का स्पष्ट (स्वाधीन ) उच्चारण से समर्थ होना; इसमें वाणी और मन का व्यापार होता है तथा बड़ा क्लेश भी होता है अतः यह ( अध्ययन ) भाव्य नहीं हो सकता। [ पुरुष की प्रवृत्ति का भाव्य वही हो सकता है जो सुखकर हो । सुखद वस्तु की ओर ही प्रवृत्ति हो सकती है । अतः कष्टप्रद अध्ययन की भावना तो की ही नहीं जा सकती। ]
उसी वाक्य में आनेवाला 'स्वाध्याय' भी भाव्य नहीं हो सकता, क्योकि 'स्वाध्याय' शब्द का अर्थ है वर्णराशि ( वेद ), जो नित्य ( Eternal ) तथा विभु ( All-pervading ) है, उस पर उत्पत्ति आदि चार क्रियाफलों ( कर्मों ) में से कोई भी आरोपित नहीं किया जा सकता। [ उसी शब्द 'अध्येतव्यः' में स्थित अध्ययन जब भाव्य नहीं