________________
सर्वदर्शनसंग्रहे
सके। यह काम हम लोग गकार-व्यक्ति की एकता से ही सिद्ध कर देते हैं। अब बात है कि जोरों से उच्चरित गकार, धीरे से उच्चरित गकार आदि में भेद के लिए तो व्यक्ति को स्वीकार करना ही पड़ सकता है ? नहीं, व्यक्तियों को अनेकता की सिद्धि उस विशिष्ट व्यक्ति की व्यंजना करनेवाले नादों से ही हो जायगी । इस प्रकार गत्व आदि जाति मानना व्यर्थ है।] ___ उसी प्रकार -'शब्द में जब निर्बाध प्रत्यभिज्ञा उत्पन्न होती है, तब शन्द अनित्य सिद्ध करनेवाले सारे अनुमानों का यही खण्डन कर देती है ॥९॥
(१०. वेद की प्रामाणिकता-निष्कर्ष ) एतेनेवमपास्तं यदवादि वागीश्वरेण मानमनोहरे–'अनित्यः शब्दः, इन्द्रियग्राह्यविशेषगुणत्वाच्चभूरूपवदिति । शब्दद्रव्यत्ववादिनं प्रत्यसिद्धः। ध्वन्यंशे सिद्धसाधनत्वाच्च । अश्रावणत्वोपाधिबाधितत्वाच्च । उवयनस्तु आश्रयाप्रत्यक्षत्वेऽप्यभावस्य प्रत्यक्षता महता प्रबन्धेन प्रतिपादयन्निवृत्तः कोलाहलः, उत्पन्नः शब्द इति व्यवहाराचरणे कारणं प्रत्यक्ष शब्दानित्यत्वे प्रमाणयति स्म। ____ इस प्रकार के शास्त्रार्थ से, जो वागीश्वर ने मानमनोहर नामक ग्रन्थ में अनुमान दिया है, उसका भी खण्डन हो गया। [ वह अनुमान इस प्रकार है ]–'शब्द अनित्य है क्योंकि यह इन्द्रिय (श्रोत्र ) के द्वारा ग्रहण करने योग्य विशेष गुण है, जैसे चक्षु ( इन्द्रिय) का रूप ( गुण)।' शब्द को द्रव्य माननेवाले लोग तो इसे असिद्ध कर देंगे। मीमांसक लोग वर्णात्मक शब्द को द्रव्य मानते हैं । मध्व-मत माननेवाले भी ककारादि को द्रव्य ही कहते हैं। जब शब्द गुण ही नहीं है तो एक इन्द्रिय के द्वारा बाह्य विशेष गुण कहाँ से होगा? इस तरह शब्द ( पक्ष ) में हेतु की वृत्ति नहीं होने से यह स्वरूपासिद्ध हेतु हो जायगा । ध्वन्यात्मक शब्द को मीमांसक अनित्य मानते हैं। ]
ध्वन्यात्मक शब्द को [ अनित्य सिद्ध करने का प्रयास व्यर्थ है, क्योंकि ऐसा करना] सिद्ध वस्तु को फिर से सिद्ध करना हो जायगा । इसके अतिरिक्त यह अनुमान (ध्वन्यंश को अनित्य सिद्ध करनेवाला अनुमान ) 'अश्रावणल्व' उपाधि से बाधित होगा ( = व्याप्यत्वासिद्ध हेतु हो जायगा ।) [ उपाधि के विषय में चार्वाक दर्शन में काफी प्रकाश डाला गया है। उपर्युक्त अनुमान में हेतु ( इन्द्रियग्राह्यविशेषगुणत्व ) इतना व्यापक है कि कभी-कभी यह नित्य ( साध्य का अभाव ) वस्तुओं में, जैसे मीमांसकों के अनुसार नित्य शब्द में भी पाया जाता है अतः अश्रावणत्व उपाधि लगानी पड़ेगी। देखिये-चार्वाकदर्शन । उपाधियुक्त हेतु रहने से दोष होगा। .
[शब्द को अनित्य माननेवाले उदयन का मत- उदयनाचार्य आश्रय (शब्दाश्रय आकाश ) का प्रत्यक्ष न होने पर भी अभाव का प्रत्यक्ष (आश्रय में विद्यमान अभाव का