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सर्वदर्शनसंग्रहे
साधर्म्य से शब्द को आप लोग अनित्य मानते हैं तो प्रमेयत्व ( Knowability ) होने के कारण घट के साधर्म्य से वस्तुएं ही अनित्य हो जायेंगी । इस प्रकार सभी वस्तुओं को अनित्य मानने का दोष लगा कर जाति के द्वारा शब्द की अनित्यता का खण्डन करते हैं ।
( २४ ) कार्यसम जाति उसे कहते हैं जहां किसी प्रयत्न के अनेक कार्य ( परिणाम Effect ) दिखाकर किसी वाद का खण्डन करते हैं । वादी कहता है कि शब्द अनित्य है क्योंकि यह प्रयत्न का परिणाम है । अब प्रतिवादी कहता है कि प्रयत्न के कार्य दो प्रकार के हैं - ( १ ) असत् वस्तु की उत्पत्ति, जैसे घट और ( २ ) पहले से विद्यमान ( सत् ) वस्तु की अभिव्यक्ति - जैसे कूपजल । शब्द इन दोनों में किस प्रकार का कार्य है ? पहली स्थिति में तो शब्द अनित्य रहेगा किन्तु दूसरी स्थिति में नित्यता आ जाती है । इस प्रकार कार्य की अनेकता से शब्दानित्यत्व सिद्ध होना कठिन है ।
गौतम ने न्यायशास्त्र के पंचम अध्याय के प्रथम आह्निक में इन जातियों की विवेचना करते हुए इनमें दोषों की उद्भावना करने की विधि भी बतलाई है । विशेष ज्ञान के लिए वात्स्यायनभाष्य देखें ।
( ६. निग्रहस्थान और उसके बाईस भेद )
पराजयनिमित्तं निग्रहस्थानम् । तद् द्वाविंशतिप्रकारम् । प्रतिज्ञाहानिप्रतिज्ञान्तर- प्रतिज्ञाविरोध-प्रतिज्ञासंन्यास - हेत्वन्तरार्थान्तर - निरर्थकाविज्ञाताथपार्थकाप्राप्तकाल - न्यूनाधिक पुनरुक्ताननुभाषणाज्ञानाप्रतिभा विक्षेप-मतानुज्ञा - पर्यनुयोज्योपेक्षण-निरनुयोज्यानुयोगापसिद्धान्त हेत्वाभासभेदात् ।
अत्र सर्वान्तर्गणिकस्तु विशेषस्तत्र शास्त्रे विस्पष्टोऽपि विस्तरभिया न प्रस्तूयते ।
[ किसी शास्त्रार्थ में ] पराजय प्राप्त करने के जो-जो कारण हैं उन्हें निग्रहस्थान ( Occasion for rebuke ) कहते हैं । ये बाईस प्रकार के हैं - प्रतिज्ञाहानि, प्रतिज्ञान्तर, प्रतिज्ञाविरोध, प्रतिज्ञासंन्यास, हेत्वन्तर, अर्थान्तर, निरर्थक, अविज्ञातार्थ, आपार्थक, अप्राप्तकाल, न्यून, अधिक, पुनरुक्त, अननुभाषण, अज्ञान, अप्रतिभा, विक्षेप, मतानुज्ञा, पर्यनुयोज्योपेक्षण, निरनुयोज्यानुयोग, अपसिद्धान्त तथा हेत्वाभास ।
यहाँ इन सब के अवान्तर भेदों का वर्णन विस्तार के भय से प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं, क्योंकि [ न्याय - ] शास्त्र में ये अच्छी तरह से स्पष्ट किये गये हैं ।
विशेष - कोई वादी शास्त्रार्थ में इसलिए परास्त होता है कि वह निग्रहस्थान के किसी न किसी भेद की चपेट में पड़ जाता है । मध्यस्थों के लिए निग्रहस्थान बड़े काम की चीज है कि जब कोई शास्त्रार्थी आँखों में धूल झोंककर आगे बढ़ा जा रहा हो तो उसे रोकें ।