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सर्वदर्शनसंग्रहेपर्वत सागर आदि सारे पदार्थ हैं । अवान्तर महत्व से अनुमान इस प्रकार होगा-पर्वत, सागर आदि कार्य हैं क्योंकि इनमें अवान्तर महत्त्व है; जैसे घट आदि ।]
नापि विरुद्धो हेतुः । साध्यविपर्ययव्याप्तेरभावात् । नाप्यनकान्तिकः । पक्षादन्यत्र वृत्तेरदर्शनात् । नापि कलात्ययापदिष्टः । बाधकानुपलम्भात् । • नापि सत्प्रतिपक्षः । प्रतिभटादर्शनात् ।
ननु नगादिकमकर्तृकं शरीराजन्यत्वाद् गगनवदिति चेत्-नैतत्परीक्षाममीक्ष्यते । न हि कठोरकण्ठीरवस्य कुरङ्गशावः प्रतिभटो भवति । अजन्यत्वस्यैव समर्थतया शरीरविशेषणवैयर्थ्यात् ।
[ संसार को सकर्तृक सिद्ध करनेवाला यह ‘कार्यत्व' ] विरुद्ध हेतु नहीं है। कारण यह है कि साध्य ( सकर्तृत्व ) के विरुद्ध कोई भी व्याप्ति नहीं मिलती। [विरुद्ध हेतु या हेत्वाभास यही है जो साध्य में कभी प्राप्त न हो, साध्याभाव में रहे। कार्यत्व हेतु साध्याभाव ( अकर्तृक ) में प्राप्त नहीं होता-जो कार्य होगा उसका कर्ता कोई अवश्य होगा, बिना कर्ता के कार्य नहीं हो सकता । ] यह हेतु अनैकान्तिक भी नहीं है क्योंकि पक्ष के अलावे
और कहीं इस हेतु की प्राप्ति ( वृत्ति ) नहीं होती। [ सकर्तृक साध्य है, परमाणु आदि में उसका अभाव है किन्तु उनमें कार्यत्व भी नहीं है इसलिए 'कार्यत्व' हेतु का व्यभिचार परमाणु आदि में नहीं होता । अतः सव्यभिचार या अनैकान्तिक हेतु यहाँ नहीं । ] यह हेतु कालात्ययापदिष्ट या बाधित भी नहीं है, क्योंकि बाधक प्रमाण नहीं मिलता। सत्प्रतिपक्ष हेतु भी यह नहीं है, क्योंकि [ साध्याभाव को सिद्ध करने वाला 'कार्यत्व' हेतु के ] टक्कर का कोई दूसरा हेतु नहीं है। [ इस प्रकार पाँचों हेत्वाभाव खण्डित हो जाते हैं जिससे संसार को सकर्तृक सिद्ध करनेवाले अनुमान में कार्यत्व' शुद्ध माना गया । ] ___अब यदि कोई पूर्वपक्षी शंका करे कि पर्वत आदि का कोई कर्ता नहीं (=पर्वत अकर्तृक है ) क्योंकि ये शरीर से उत्पन्न नहीं होते जैसे आकाश । तो उत्तर में कह सकते हैं कि यह प्रतिद्वन्द्वी हेतु ( जो सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास सिद्ध करने के लिए दिया गया है ) परीक्षा के योग्य नहीं दिखलाई पड़ता। हरिण का बच्चा प्रौढ़ सिंह ( कण्ठीरव ) का प्रतिद्वन्द्वी नहीं हो सकता ।' 'उत्पन्न न होना' (अजन्यत्व ) हेतु ही पर्याप्त है, 'शरीर' विशेषण उसमें व्यर्थ ही लगाया गया है। [ ऊपर सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास का खण्डन इस आधार पर किया गया है कि कोई प्रतिद्वन्द्वी हेतु (प्रतिभट ) साध्याभाव सिद्ध करनेवाला
१. बड़े सिंह का प्रतिभट हरिण का बच्चा नहीं हो सकता, वैसे ही सकर्तृकत्व के लिए दिये गये ‘कार्यत्व' हेतु का प्रतिद्वन्द्वी ( हेत्वन्तर ) अकर्तृकत्वसाधन के लिए दिया गया 'शरीराजन्यत्व' हेतु नहीं हो सकता । सत्प्रतिपक्ष हेतु वहीं होता है जहाँ पूर्व हेतु के समान ही दूसरा हेतु हो । दोनों में समान बल रहना चाहिए ।