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अक्षपाद-दर्शनम्
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है तो सभी पदार्थों के साथ भी समता ( अविशेष ) दिखलाई जा सकती है । यदि शब्द ( पक्ष ) और घट ( दृष्टान्त ) में कृतकत्व के चलते समता है तो प्रमेयत्व के चलते शब्द के साथ सभी पदार्थों की भी समता दिखाई जा सकती है । तब तो सब के सब पदार्थ नित्य या अनित्य कुछ भी किये जा सकते हैं ।
(१९) उपपत्तिसम जाति वह है जिसमें पृथक्-पृथक् हेतुओं से साध्य और उसके विरोध दोनों को सिद्धि की जा सके । यदि कृतक होने के कारण शब्द अनित्य है तो अवयवरहित होने के कारण वह नित्य क्यों नहीं हो सकता ? पहले वाद में घट दृष्टान्त होगा, दूसरे में आकाश ।
वादी का खण्डन करने के लिए अभाव में भी दूसरे कारणों से
( २० ) उपलब्धिसम जाति उसे कहते हैं जिसमें यह कहा जाता है कि आपके द्वारा निर्दिष्ट कारण के ( प्रत्यक्षादि से ) हम साध्य का ज्ञान पा लेते हैं । वादी की यह उक्ति कि पर्वत धूम के कारण अग्निमान् है, खण्डित हो सकती है कि घूम के बिना भी आलोक आदि देखकर हम अग्नि का पता लगा लेते हैं । शब्द को अनित्य सिद्ध करने के लिए 'कृतकत्व' हेतु देने की आवश्यकता नहीं, उसके बिना भी हवा के झकोरे से पेड़ों की डालों को टूटते देखकर शब्द की अनित्यता सिद्ध होती है । शब्द हुआ और समाप्त । एक कार्य का एक ही कारण होता है, ऐसी धारणा है, इसीलिए यह जाति लगती है ।
(२१) अनुपलब्धिसम वह जाति है जिसमें किसी वस्तु की अनुपलब्धि ( NonPercetion अप्रत्यक्ष ) देखकर वस्तु का अभाव सिद्ध करनेवाले वाद का खण्डन ( जिसके विरुद्ध निगमन की सिद्धि ) अनुपलब्धि की भी अनुपलब्धि दिखाकर करते हैं । नेयायिक ( वादी ) कहता है कि शब्द को ढंकनेवाला कोई आवरण नहीं है, क्योंकि हम उसे नहीं पाते ( २।२।१८ ) । अब प्रतिवादी कहता है कि आवरण है, क्योंकि इसके अप्रत्यक्ष का प्रत्यक्ष नहीं होता । प्रतिवादी के अनुसार यदि किसी वस्तु के अप्रत्यक्ष से वस्तु का अभाव सिद्ध हो जाय तो उसके अप्रत्यक्ष का प्रत्यक्ष न होंने से अवश्य सिद्ध हो जायगी । तदनुसार शब्द को अनित्य नहीं मानें ।
वस्तु की सत्ता
( २२ ) नित्यसम जाति वह है जिसमें धर्म के नित्यत्व और अनित्यत्व इन दो विकल्पों के द्वारा धर्मी को नित्य सिद्ध करते हुए वादी का खण्डन करते हैं । नेयायिक सिद्ध करते हैं कि शब्द ( धर्मो ) अनित्य है । अब प्रतिवादी पूछता है कि शब्द का यह अनित्यधर्म स्वयं नित्य है या अनित्य ? यदि नित्य है तो धर्मी के बिना धर्म की स्थिति असम्भव है, इसीलिए धर्मी ( शब्द ) की भी नित्यता माननी पड़ेगी । यदि अनित्य है तो इसका अर्थ यही हुआ कि शब्द की अनित्यता अनित्य है अर्थात् शब्द नित्य है । किसी प्रकार भी शब्द की नित्यता ही सिद्ध हो जाती है ।
( २३ ) अनित्यसम जाति वह है जब कुछ वस्तुओं की समता देखकर उनमें समानधर्म की सिद्धि करके सभी वस्तुओं को अनित्य मान लें। यदि कृतक होने के कारण घट के