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अपार-दर्शनम्
( ४. संशय, प्रयोजन और दृष्टान्त ) अनवधारणात्मकं ज्ञानं संशयः । स त्रिविधः-साधारणधर्मासाधारणधर्मविप्रतिपत्तिलक्षणभेदात् ।
यमधिकृत्य प्रवर्तन्ते पुरुषास्तत्प्रयोजनम् । तद् द्विविधम्-दृष्टा
दृष्टभेदात् ।
व्याप्तिसंवेदनभूमिर्दष्टान्तः । स द्विविधः-साधर्म्यवैधर्म्यभेदात् ।
अनिश्चयात्मक ज्ञान को संशय कहते हैं। यह तीन प्रकार का है-(१) दो वस्तुओं में कोई धर्म साधारण होने के कारण होनेवाला संशय [जेसे—यह स्थाणु है कि पुरुष । स्थाणु ( खम्भे) और पुरुष, दोनों में सामान्य धर्म एक ही है-ऊंचा होना । विशेषताएं स्पष्ट नहीं हैं-स्थाणुत्व का निर्णय करनेवाली विशेषताएं जैसे वक्रता या कोटरादि होना अथवा पुरुषत्व का निर्णय करनेवाली विशेषताएं जेसे हाथ, पैर आदि-कोई भी स्पष्ट नहीं हैं, इसी से संशय होता है। ] (२) किसी वस्तु के असाधारण धर्म दिये जाने के कारण होनेवाला संशय [ जैसे पृथिवी नित्य है कि अनित्य । पृथिवी का असाधारण ( अपना ) धर्म है गन्ध से युक्त होना । यह 'गन्धवत्त्व' न तो अनित्य पदार्थों में है न नित्य में ही, केवल पृथिवी में ही इसकी सत्ता है । पृथिवी को नित्यता या अनित्यता के ज्ञान का साधन न होने के कारण ही ऐसा संशय हुआ।] (३) विभिन्न शास्त्रकारों में मतभेद होने के कारण उत्पन्न संशय [ जैसे-कुछ लोग कहते हैं कि शब्द नित्य है, दूसरे कहते हैं कि शब्द अनित्य है। इन दोनों का मतभेद देखकर बीचवाला घबरा उठता है और संशय होता है। ]
जिस कार्य को ध्यान में रखकर पुरुषों की प्रवृत्ति होती है वही प्रयोजन है । यह दो प्रकार का है-दृष्ट प्रयोजन और अदृष्ट प्रयोजन । [ कोई वस्तु त्याज्य या ग्राह्य होती है। उसे त्यागने या ग्रहण करने को मनुष्य उपाय करता है। यह वस्तु ही प्रयोजन कही जाती है । दृष्ट प्रयोजन प्रत्यक्ष होता है, जैसे-अवघात करने का प्रयोजन है भूसों को पृथक् करना । अदृष्ट प्रयोजन विहित तथा परोक्ष होता है, जैसे-ज्योतिष्टोम-याग का का प्रयोजन स्वर्गप्राप्ति । ___ दृष्टान्त की स्थापना का जो आधार होता है वही व्याप्ति है। इसके दो भेद हैंसाधर्म्य दृष्टान्त और वैधर्म्य दृष्टान्त । [न्यायसूत्र में कहा गया है कि लौकिक परीक्षकों की बुद्धि जिस विषय पर एकमत हो जाय वही दृष्टान्त है । दृष्टान्त का अपना अर्थ हैजिसके द्वारा अन्त या निश्चय देखा गया हो, पाया गया हो। 'यत्र धूमः तत्राग्निः' इस व्याप्ति का निश्चय करने के लिए महानस ( रसोईघर ) का उदाहरण देते हैं-यही दृष्टान्त है। रसोईघर अपने पक्ष का पोषक होने के कारण साधर्म्य दृष्टान्त है। इसी व्याप्ति में 'सरोवर' वेधर्म्य दृष्टान्त होगा क्योंकि जब व्यतिरेक-विधि से व्याप्ति पर आयेंगे-'जहाँ