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अक्षपाद-दर्शनम्
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सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए - यही वाद ( Discussion ) की रूपरेखा है
( न्या० सू० १1२1१ ) । ]
विजय की इच्छा से की जानेवाली कथा, जिसमें दोनों पक्षों की सिद्धि हो सकती है, जल्प कहलाती है । [ जल्प में केवल विजय पर ध्यान रखते हैं । यह ध्यान नहीं रहता कि जिन तर्कों से अपने पक्ष की रक्षा की जाती है उन्हीं से परपक्ष की भी तो रक्षा होती है । इसमें छल, जाति, निग्रहस्थान का भी प्रयोग होता है यद्यपि पञ्चावयव - वाक्यों से ही शास्त्रार्थ आरम्भ होता है । उक्त लक्षण में 'विजिगीषु' पद का प्रयोग जल्प को वाद से पृथक् करता है । वितण्डा से पृथक् करने के लिए 'उभयसाधनवती' का प्रयोग हुआ है । ]
जिस कथा में अपने पक्ष की ही स्थापना नहीं की जाय वह वितण्डा ( Gavil ) है । [ न्यायसूत्र ( १1२1३ ) के अनुसार जिस जल्प में प्रतिपक्ष ( किसी एक पक्ष ) की स्थापना नहीं हो, केवल एक ही पक्ष पर विवाद या हठ ठान लें वही वितण्डा है । वैतfuse किसी भी साध्य की प्रतिज्ञा नहीं करता । उसका कोई अपना पक्ष नहीं रहता । ] कथा का अभिप्राय यह है कि वादी और प्रतिवादी पक्ष और प्रतिपक्ष का ग्रहण कर लें 1 [ यह एक प्रकार का वार्तालाप है जिसमें दो दलवाले एक ही विषय के पक्ष और विपक्ष में बोलते हैं । स्मरणीय है कि कथा के ही वाद, जल्प और वितण्डा ये तीन भेद हैं । ] ( ५ ख. हेत्वाभास और छल )
असाधको हेतुत्वेनाभिमतो हेत्वाभासः । स पश्वविधः - सव्यभिचारविरुद्ध-प्रकरणसम - साध्यसमातीतकालभेदात् ।
हेत्वाभास उसे कहते हैं जो हेतु के रूप में रखा गया हो किन्तु लक्ष्य को सिद्ध न कर सके 1 ( न तु साक्षाद् हेतुः किन्तु तथा प्रतीयते ) इसके पाँच भेद हैं- सव्यभिचार, विरुद्ध, प्रकरणसम, साध्यसम और अतीतकाल ( या कालातीत ) । '
विशेष - हेत्वाभास के उक्त भेदों के नाम न्यायसूत्र के आधार पर लिये गये हैं । नव्यन्याय की सूक्ष्मता यहाँ पर भी लगी है जिससे विश्लेषण तथा नामकरण में कुछ अन्तर हो गया । दार्शनिक विवेचना में हेत्वाभासों का अत्यधिक प्रयोग होने के कारण यहाँ हम उनकी व्याख्या करें ।
( १ ) सव्यभिचार ( Discrepant reason ) - व्यभिचार का अर्थ है सहचार नहीं होना अर्थात् हेतु का उन स्थानों में भी साथ देना जिन स्थलों में साध्य का अभाव हो । व्यभिचार रहने पर व्यभिचार नाम का हेत्वाभास होता है जिससे एकाधिक
१. अनुमान के वाक्यों में जो हेतु ( Middle term ) शुद्ध नहीं रहता वह शुद्ध अनुमान नहीं करा सकता और फलतः ऐसे अनुमान दोषपूर्ण हो जाते हैं । ऐसे ही अशुद्ध तुओं को हेत्वाभास Fallacies of Reason ) कहते हैं । हेतु + आभास ( प्रतीत होनेवाला ) = जो हेतु नहीं हो पर हेतु के समान दिखलाई पड़ रहा हो ।