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सर्वदर्शनसंग्रहे
निष्कर्ष ( अन्त ) की प्राप्ति होती है । यही कारण है कि सव्यभिचार को अनेकान्तिक कहा जाता है । उदाहरण है
सभी द्विपद जीव विचारशील हैं
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हंस द्विपद जीव हैं । .. हंस विचारशील हैं ।
यहाँ का हेतु ( द्विपद जीव ) साध्य अर्थात् 'विचारशील' से व्याप्ति सम्बन्ध नहीं रखता, क्योंकि द्विपद जीव का सम्बन्ध विचारशील और अविचारशील दोनों से है । दूसरे शब्दों में यों कहें कि 'द्विपद जीव' हेतु और 'विचारशील' ( साध्य ) में व्यभिचार सम्बन्ध है । जिस प्रकार इस हेतु से हंसों की विचारशीलता सिद्ध होती है उसी प्रकार उसी हेतु से उनकी विचारहीनता भी सिद्ध होती है । इसी से यह अनेकान्तिक हेतु है । सव्यभिचार के तीन भेद किये गये हैं
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( क ) साधारण ( Overwide ) - जब हेतु की वृत्ति या स्थिति साध्य वस्तु के अभाववाले स्थानों में भी हो ( जहाँ साध्य न हो वहाँ भी हेतु की प्राप्ति हो ) तब साधारण सव्यभिचार होता है । उदाहरण के लिए - 'पर्वत अग्नियुक्त है क्योंकि यह प्रमेय (ज्ञेय ) है।' इस वाक्य में 'प्रमेयत्व' ( हेतु ) जो अग्नि के साथ दिखलाया गया है वह अग्नि के अभाववाले स्थान ( जैसे - तालाब) में भी तो रहता है-जैसे अग्नियुक्त पदार्थ ज्ञेय हैं वैसे ही अग्निहोन पदार्थ भी तो ज्ञेय हो सकते हैं । फल यह होगा कि 'पर्वत की अग्निहीनता' भी इसी हेतु से सिद्ध हो जायगी । इस प्रकार हेतु की वृत्ति साध्य और साध्याभाव दोनों स्थानों में है । 'यह गाय है क्योंकि इसकी दो सींगें हैं' यह भी साधारण उदाहरण है ।
( ख ) असाधारण ( Uncommon ) – जो हेतु न तो सपक्ष में पाया जाय न विपक्ष में ही, उसे असाधारण कहते हैं । ऐसा हेतु केवल पक्ष ( Minor term ) में ही रहता है । जैसे - शब्द नित्य है क्योंकि उसमें शब्दत्व है । यहाँ 'शब्दत्व' ( हेतु ) सारे नित्य पदार्थों (जैसे --- आत्मा आदि ) तथा अनित्य पदार्थों (जैसे- से-घट आदि ) से पृथक् है । मिलता है तो केवल पक्ष अर्थात् शब्द में ही । इसी हेतु से हम यह निष्कर्ष भी निकाल सकते हैं कि शब्द अनित्य है । जब कहीं मिलता ही नहीं तो नित्य और अनित्य दोनों का दावा समान है |
( ग ) अनुपसंहारी ( Non-Conclusive ) - जिस हेतु को न तो अन्वय ( समान ) दृष्टान्त मिले और न ही व्यतिरेक ( असमान Dissimilar ) दृष्टान्त ही, अनुपसंहारी कहते हैं । जैसे- सभी वस्तुएं क्षणिक हैं क्योंकि वे प्रमेय हैं । यहाँ समान और असमान दृष्टान्त मिलना असम्भव है क्योंकि 'सभी वस्तुएँ' ही पक्ष के रूप में हैं । कोई दृष्टान्त इससे पृथक् रहे तब तो ? और पक्ष स्वयं दृष्टान्त होगा ही नहीं । यद्यपि यहाँ पक्ष का दोष है परन्तु हेतु के कारण ही अनुमान में निष्कर्ष निकलता है, अतः यह भी हेत्वाभास ही है ।
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